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महाक सिंह विरइउ पन्जण्णचरित
(8) राजनैतिक-सन्दर्भ
प०च० चूँकि राजतन्त्रीय-प्रणाली में पोषित एक नायक से सम्बन्धित महाकाव्य है, अतः उसमें प्रसंगवश कुछ राजनैतिक सामग्री भी उपलब्ध होती है। यह सच है कि शान्त-रस प्रधान एक पौराणिक-महाकाव्य होने के कारण उसमें राजनीति के पूर्ण तथ्यों का समावेश नहीं हो पाया है और कथा-नायक प्रद्युम्न जन्मकाल से ही अपहृत होकर युवा-जीवन के बहुल-काल तक संघर्षों से जूझता हुआ इधर-उधर भटकता रहा। इस कारण इस ग्रंथ में उसके संघर्षो एवं युद्धों की चर्चा ही अधिक हुई है, फिर भी प्रसंग-प्राप्त-अवसरों पर पच्च० में जिन राजनैतिक तथ्यों के उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे निम्न प्रकार हैं(क) शासक-भेद
(1) राजा
प्रभुसत्ता में हीनाधिकता के कारण राजारों की परिभाषा में भेद किया गया है। इसीलिए मचल में राजाऔं के लिए चक्रवर्ती (4/10/14), अर्द्ध-चक्रवर्ती (10 16:5), माण्डलिक (6:11/1), नराधिप (14/535), नरनाथ (14/5:1}), नरपति (13/5/14), नरेन्द्र (13/5:14) जैसे विशेषण के प्रयोग किये गये हैं। ___ आदिपुराण के अनुसार चक्रवर्ती वह राजा कहलाता था जो छह खंडों का अधिपति होता था और बत्तीस हजार राजा जिसके अधीन होते थे। कवि सिंह ने भी चक्रवर्ती की यही परिभाषा दी है तथा पोदनपुर नरेश को चक्रवर्ती एवं महाराज श्रीकृष्ण को अर्द्धचक्रवर्ती (10/16/5), के नाम से अभिहित किया है। अर्द्ध-चक्रवर्ती को उन्होंने तीन खण्डों का अधिपति बतलाया है। नराधिप, नरपति, नरनाथ, नरेन्द्र एवं राजा, ये शब्द पर्यायवाची है। कवि के द्वारा वर्णित राजाओं के निम्न कार्यों पर प्रकाश पड़ता है
(1) शत्रु राजाओं को पराजित करके भी वे उन्हें क्षमा प्रदान कर देते थे। (2) इच्छानुसार पर-नारियों का अपहरण कर लेते थे एवं (3) विजेता राजा अपने अधीन राताओं को विजयोत्सव के समय बुलाता था। (2) माण्डलिक
आदिपुराण के अनुसार माण्डलिक वह राजा कहलाता था, जिसके अधीन चार सौ राजा रहते थे। किन्तु आगे चलकर संभवत: यह परम्परा परिवर्तित हो गयी और भाण्डलिक वह कहलाने लगा, जो किसी सम्राट या अधिपति के अधीन रहकर एक मण्डल अथवा एक छोटे से प्रान्त के शासक के रूप में काम किया करता था। कवि सिंह ने माण्डलिक को भृत्य कहा है, इसका तात्पर्य यही है कि वह किसी सम्राट द्वारा नियुक्त, उसके राज्य के प्रदेश-विशेष के एक शासक के रूप में यथा-निर्देशानुसार कार्य किया करता था तथा जिसका सुनिश्चित शर्तों के अनुसार उसे भुगतान मिलता था। महाकवि सिंह ने अपनी आद्य-प्रशस्ति में भुल्लणः' को बम्हणवाडपट्टन का भृत्य (1/4/10) कहा है, जो बल्लाल नरेश का माण्डलिक था। पच० में वटपुर के राजा कमकरथ को भी कवि ने माण्डलिक (6/11/1) कहा है।
(3) सामन्त कवि ने प०च में सामन्त (6/10/4.6/14.5.6/18/1) शब्द का भी उल्लेख किया है, जो शासकों की एक
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