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१७. सुप्रभाताटकम् 836 ) मागे यत्प्रकटीकरोति हरते दोगनुषास्थिति
लोकानां विदधाति राष्टिमचिरावर्थावलोकक्षमाम् । कामासधियामपि कशयति प्रीति प्रियायामिति
प्रातस्तुल्यतयापि को ऽपि महिमापूर्वः प्रमातोऽहताम् ॥ ६॥ 837) यानोरपि गोचरं न गतवान् चिचे स्थित तत्तमो
भव्यानां वलयत्तथा कुपलये कुर्याद्विकाराधियम् ।
दिवाः निर्मलाः जाताः । पक्षे उपदेशः ॥ ५॥ अईता सर्वज्ञानाम् । प्रभातः । इति अमुना प्रकारेण । प्रातस्तुल्यतयापि शेऽपि अपूर्वमहिमा वर्तते । यत्सुप्रभात मार्ग प्रकटीकरोति । दोषानुषा स्थिति दोषसंसर्गस्थितिम् । इरते स्फेटपति । लोकानां दृष्टिम् , अविरात अर्यावलोकक्षमाम् । विवधाति करोति । यरसुप्रभात कामासक्तधियाम् अपि प्रियाया प्रीति कशयति । पक्षे रामाविप्रीति
शयति क्षीणां ] करोति । इति हेतोः अपूर्वमहिमा प्रभातः वर्तते ॥ ॥जेनं श्रीसुप्रभात सदा काले । वः युप्माकम् । क्षेम विवधातु करोतु । विलक्षण प्रभातम् । अवमम् असाशम् । यस्सुप्रभातम् । भम्याना तत्तमः दलप्यत्, स्फेटयत् यामः भानोरपि सूर्यस्यापि । गोचरं गम्यम् । म गतवत् न प्राप्तम् । यत्तमः शिस स्थितम् । यत्प्रभात कुवलये भूमण्ड विकात्रिय पुवत् । यदिद
जाती है। वह जिनेन्द्र देवका सुप्रभात वन्दनीय है ।। ५ ॥ अरहंतोंका प्रभात मार्गको प्रगट करता है, दोषोंके सम्बन्धकी स्थितिको नष्ट करता है, लोगोंकी दृष्टिको शीघ्र ही पदार्थके देखनमें समर्थ करता है, तथा विषयभोगमें आसक्तबुद्धि प्राणियोंकी स्त्रीविषयक प्रीतिको कृश (निर्बल) करता है। इस प्रकार वह अरहंतोंका प्रभात यधपि प्रभातकालके तुल्य ही है, फिर भी उसकी कोई अपूर्व ही महिमा है। विशेषार्थ--जिस प्रकार प्रभातके हो जानेपर मार्ग प्रगट दिखने लगता है उसी प्रकार अरहन्तोंके इस प्रभातमें प्राणियोंको मोक्षका मार्ग दिखने लगता है, जिस प्रकार प्रभात दोषा (रात्रि) की संगतिको नष्ट करता है उसी प्रकार यह अहंतोंका प्रभात राग-द्वेषादिरूप दोषोंकी संगतिको नष्ट करता है, जिस प्रकार प्रभात लोगोंकी दृष्टिको शीघ्र ही घट-पटादि पदार्थोके देखनेमें समर्थ कर देता है उसी प्रकार यह अरहंतोंका प्रभात प्राणियोंकी दृष्टि (ज्ञान) को जीवादि सात तत्त्वोंके यथार्थ स्वरूपके देखने-जाननेमें समर्थ कर देता है, तथा जिस प्रकार प्रभात हो जानेपर कामी जनकी स्त्रीविषयक प्रीति कम हो जाती है उसी प्रकार उस अरहंतोंके प्रभातमें मी कामी जनकी विषयेच्छा कम हो जाती है । इस प्रकार अरहंतोंका वह प्रभात प्रसिद्ध प्रमातके समान होकर भी अपूर्व ही महिमाको धारण करता है ।। ६ ॥ भन्य जीवोंके हृदयमें स्थित जो अन्धकार सूर्यके गोचर नहीं हुआ है अर्थात् जिसे सूर्य भी नष्ट नहीं कर सका है उसको जो जिन भगवान्का सुप्रभात नष्ट करता है, जो कुवलय ( भूमण्डल) के विषयमै विकाशलक्ष्मी (प्रमोद ) को करता है - लोकके सब प्राणियोंको हर्षित करता है, तथा जो निशाचरों (चन्द्र एवं राक्षस आदि) के भी तेज और सुखका पात नहीं करता है; वह जिन भगवान्का अनुपम सुप्रभात सर्वदा आप सबका कल्याण करे ॥ विशेषार्थ-- लोकमसिद्ध प्रभातकी अपेक्षा जिन भगवान के इस सुप्रभातमें अपूर्वता है। वह इस प्रकारसे-प्रभातका समय केवल रात्रिके अन्धकार को नष्ट करता है, वह जीवोंके अभ्यन्तर अन्धकार (अज्ञान )को नष्ट नहीं कर सकता है। परन्तु जिन भगवान् का यह सुप्रभात भव्य जीवोंके हृदयमें स्थित उस अज्ञानान्धकारको भी नष्ट करता है। लोकमसिद्ध प्रभात
१४ पूर्वप्रभातो, र पूर्वप्रमावे।