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पमनन्दि-पश्चविंशतिः
[898 : १७७तेजसौल्याहतेरकर्ट यदि नकंचराणामपि
क्षेमं वो विदधातु जैनमसमं श्रीसुप्रभातं सदा । 898 ) भव्याम्भोरदनन्दिकेवलरविः नामोति पत्रोवर्ष
दुष्कोदयनिद्या परिष्कृतं जागर्ति सर्षे अगत् । नित्यं यैः परिपठ्यते जिनपतेरेतत्प्रभाताष्टकं
वेषामाशु विनाशमेति दुरितं धर्मः सुखं वर्धते ॥ ८ ॥ सुप्रभातम् । नतंचराणा देवचन्द्रराक्षसारीमाम् । सौल्यइतेः तेजा भर्न 'हन हिंसागयोः देवादीना मुलेन गमनस्य तेजः तस्य तेजसः अका भकारकम् ॥ ७॥ यत्र सुप्रभाते। भठ्याम्मोहनन्दिकेवलरविः उदय प्रामोति । यत्र यस्मिन् प्रमाते । सविते सति । सर्व जगत् दुष्कर्मोदयनिया परिहतं सतम्। जागति एतत् जिनपतेः प्रभाताष्टकम् । यैः भव्यैः । नित्य सदैव । परिपत्यते । तेषा भव्यानाम् । दुरित पापम् 1 भाशु शीघ्रण। विनाशम् एति विलयं गच्छति । धर्मः सुखं वर्धते ॥८॥ इति सुप्रभाताष्टकम् ॥१४॥ कुवलय (सफेट कमल) को विकसित नहीं करता, बल्कि उसे मुकुलित ही करता है परन्तु जिन भगवान्का सुप्रभात उस कुवलयको ( भूमण्डलके समस्त जीवोंको) विकसित (प्रमुदित) ही करता है। लोकप्रसिद्ध प्रभात निशाचरों (चन्द्र, चोर एवं उलूक आदि) के तेज और सुखको नष्ट करता है, परन्तु जिन भगवान्का वह सुप्रभात उनके तेज और सुखको नष्ट नहीं करता है। इस प्रकार वह जिन भगवान्का अपूर्व सुप्रमात सभी प्राणियोंके लिये कल्याणकारी है ॥ ७॥ जिस सुप्रभातमें मव्य जीवोरुप कमलोंको आनन्दित करनेवाला केवलप डरयो राप्त होगा तथा सम्पूर्ण जगत् ( जगत्के जीव) पाप कर्मके उदयरूप निदासे छुटकारा पाकर जागता है अर्थात् प्रबोधको प्राप्त होता है उस जिन भगवान्के सुप्रभातकी स्तुतिस्वरूप इस प्रभाताष्टकको जो जीव निरन्तर पढ़ते हैं उनका पाप शीघ्र ही नाशको प्राप्त होता है तथा धर्म एवं सुख वृद्धिंगत होता है। विशेषार्थ-जिस प्रकार प्रभातके हो जानेपर कमलोंको प्रफुल्लित करनेवाला सूर्य उदयको प्राप्त होता है उसी प्रकार जिन भगवान्के उस सुप्रभातमें भव्य जीवोंको प्रफुल्लित करनेवाला केवलज्ञानरूप सूर्य उदयको प्राप्त होता है तथा जिस प्रकार प्रभातके हो जानेपर जगत्के प्राणी निद्रासे रहित होकर जाग उठते हैं उसी प्रकार जिन भगवान के प्रभातमें जगत्के सब प्राणी पापकर्मके उदयस्वरूप निद्वासे रहित होकर जाग उठते हैं-प्रबोधको प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार यह जिन भगवान्का सुप्रभात अनुपम है। उसके विषयमें जो श्रीमुनि पद्मनन्दीने आठ श्लोकोंमें यह स्तुति की है उसके पढ़नेसे प्राणियोंके पापका विनाश और धर्म एवं सुखकी अभिवृद्धि होती है ॥ ८ ॥ इस प्रकार सुप्रभाताष्टक समाप्त हुआ ॥ १७ ॥
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११चा सदिद। १२ ।