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८४ : पश्वचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
बाद जहां रखा जाता था उस स्थान को खलधाम ९१ (खलिहान) कहा जाता था।
पशुपालन-पशुपालन जीविका का उत्तम साधन था ! द्वितीय पर्व में मगध देय का वर्णन करते हुए कहा गया है-हितकारी पालक जिनकी रक्षा कर रहे थे ऐसे खेलते हुए सुन्दर शरीर के धारक मेह, ऊंट तथा गायों के बछड़ों से उस देश की समस्त दिशाभों में भीड़ लगी रहती थी । घ२ इस उल्लेख से गायों, भेड़ों तथा ऊंटों की संख्या का सहज अनुमान लगाया जा सकता है । गोपाल के द्वारा रक्षित गायों का बड़ा ही सुन्दर षि रविषेण ने खींचा है----मड़े-बडे भैसों की पीठ पर बैठे गाते हुए ग्वाले जिनकी रक्षा कर रहे है, शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में लगे हुए कीड़ों के लोभ से ऊपर की गर्दन उठाकर चलने वाले बगुले मार्ग में जिनके पीछे लग रहे है, रंग-बिरंगे मूत्रों में बँधे हुए घंटाओं के शब्द से जो बहुत मनोहर जान पड़ती है मानों पहले पिए हर क्षीरोदक को अजीर्ण के भय से छोड़ती रहती है, मधुर रस से सम्पन्न तथा इतने कोमल कि मुंह की भाप मात्र से टूट जाये ऐसे सर्वत्र व्याप्त तणों के द्वारा जो अत्यन्त तप्ति को प्राप्त होती थीं ऐसी गायों के द्वारा उस देश (मगधदेश) के वन सफेद-सफेद हो रहे है । कृषक समाज के लिए पशुओं की और उनमें भी वि@षकर गायदैलों की बद्दुत अधिक महत्ता रहती है, इस कारण गोपालन आदि की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। सवारी के लिए घोड़े,५२४ हाथो५५५ आदि की विशेष महत्ता यो । जो व्यक्ति जितने अधिक पशुओं का स्वामी होता था, वह उतना ही अधिक धनी माना जाता था। भरत चक्रवर्सी के यहाँ तीन करोड़ गायें, चौरासी लाख उत्तम हाथी तथा वायु के समान वेगशाली अठारह करोड़ घोड़े थे।" राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के एक करोड़ से अधिक अपनेआप दूध देने वाली गायें थी । सुन्दर गायों ओर भैसों से युषस कुटुम्बियों को
५३१. पय रा५ ।
५३२. एम. २१२४ । ५३३. महामहिषपृष्ठस्थगायगोपालपालितः ।
कोटातिलम्पटोग्रीव बलाक्रानुगतास्वमिः ॥ पप०, २०१० विवर्णसूत्रसम्बबघण्टाररितहारिभिः । क्षारदिभरजरवासात पीतक्षीरोदयत् पयः ॥ पन० २०११ सुस्वादरससम्पन्नष्पिच्छेबरनम्तरः।
सुणस्तृप्ति परिप्रान्तर्गोषमैः सितकक्षभूः ॥ पन० २११२ ५३४. पप ४।८।
५३५. प. ४१८॥ ५१६. वही, ४।६३-६४ ।
५३७. वही, ८३।१५ ।