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________________ ७२ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति के द्वारा जनता को हंसाता है, कलह में प्रेम रखता है और हास्य आदि के कार्य को ठीक जानता है उसे विदूषक कहते है। कुसुम, वसन्त आदि उसके नाम होते है। 34 पोर३७५ ...तो दूसरे का धन जुराने का काम करते थे । शबर १७७ - जो जंगल में रहते थे और शिकार आदि किया करते थे उन्हें शवर कहा जाता था । पद्मचरित के ३२ पर्व में इनका शर्वरी नदी के किनारे रहने का उल्लेख मिलता है । इसी आधार पर कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में इनका निवास शवरी नदी के किनारे रहा होगा, इस कारण इनका नाम शबर पड़ गया। ताम्बलिक३७१-पान बेचने वाले को ताम्बूलिक कहते थे। सूपकारी३८०- रसोइन अथवा सूप (दाल) बनाने वाली | निषाद३८१--जंगल में रहने वाली और शिकार पर निर्भर करने वाली एक जाति विशेष को निषाद कहते थे । हरिण का शिकार इनमें विशेष प्रचलित था । व्याध३८९-जंगल में रहने वाले शिकारियों की एक जाति विशेष । भिषक्३८३-वैध । कपाटजीवि३८४-जो कपाट (किवाड़) बनाकर जीविका करते थे। द्राग३८५-दाग के लिए पपचरित में कोषाध्यक्ष पद भी आया है। राजकीय कोष की सुरक्षा का यह सबसे बड़ा अधिकारी होता था। प्राग्रहर –मुखिया या प्रमुख पुरुष को कहा जाता था । म्लेच्छ-पदमचरित के २४वें पर्व से मलेल्कों के विषय में बहत कुछ जानकारी मिलती है । इसमें कहा गया है कि विजयाई पर्वत के दक्षिण और कैलाश पर्वत के उत्तर की ओर बीच-बीच में अन्तर देकर बहुत से देश स्थित है। ३७५. कुसुमवसन्ताद्यभित्रः फर्मपुर्वेषभाषाद्यैः । हास्यकरः कलहरतिविदूषकः स्यात् स्वकर्मज्ञः ॥ -साहित्यदर्पण ३।४२ । ३७६. पप० २।१७६ । ३७७, पद्म० २१६९ । ३७८. वही, ३२।२९। ३७९. वहीं, ८०।१७८ । ३८०. वही, ८०.१९८ । ३८१. वही, ८५1८० । ३८२. वही, ८५/७१ । ३८३. वही, ८१।५३ । ३८४. वही, ९१।२४ । ३८५. वही, ९९।१०५ । ३८६. वही, ९९१०७ । ३८७, वही, ९६।३६ । ३८८. कही, २७।५ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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