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________________ सामाजिक व्यवस्था : ७३ उन देशों में एक अर्धवर्वर नाम का देश है जो असंयमी जनों के द्वारा मान्य है, धूर्तजनों का उसमें निवास है तथा बह अत्यन्त भयंकर म्लेच्छ लोगों से व्याप्त है । ३८९ उस देश में यमराज के नगर के समान मयरमाल नाम का नगर है। उसमें आन्तरंगतम नाम का राजा राज्य करता था । पूर्व से लेकर पश्चिम तक को सम्बी भूमि में कपोत, शुक, काम्बोज, मंकन आदि जितने हजारों म्लेच्छ रहते थे वे भनेक प्रकार के शास्त्र तथा अनेक प्रकार के भीषण अस्त्रों से युक्त हो आन्तरगतम को उपासना करते थे ' या सं राहत हो आर्य देशों को उजाइते हुए वे जनक के देश को उजाड़ने के लिए उधत हए । ११ तब जनक मे राजा दशरथ को बुलाया। दशरथ की आज्ञा से राम-लक्ष्मण ने उनको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया । पराजित होकर जो कुछ म्लेच्छ बधे में वे सघ और विन्ध्य पर्वतों पर रहने लगे । ३९२ इन म्लेच्छों की बेषभूषा तथा आधार वगैरह के विषय में कहा गया है कि उनमें से कितने हो लाल रंग का शिरस्त्राण (साफा) धारण किए थे, कोई छुरी हाथ में लिए थे।३९१ कोई मसले हुए अंजन के समान काले थे। कोई सूखे पत्तों के समान कान्ति वाले थे, कोई कीचड़ के समान थे और कोई लाल रंग के थे । १४ वे अधिकतर कटिसूत्र में मणि बांधे हुए थे, पत्तों के वस्त्र पहिने हुए थे, विभिन्न धातुओं से उनके शरीर लिप्त थे, फूल को मंजरियों से उन्होंने सेखर (सेहरा) बना रखा था । ३९५ कोरियों के समान उनके दांत थे, बड़े मदका (पिठर) के समान उनके पेट ये और सेना के बीच के फूले हुए कुटज वृक्ष के समान लगते थे । ३९६ उनके हाथों में भयंकर शस्त्र थे, उनकी जा, भुजाएं और स्कन्ध अत्यन्त स्थूल थे तथा वे असुर के समान जान पड़ते थे ।३१७ अत्यन्त निर्दय थे, पशुओं का मांस खाने वाले थे, मूढ थे, पापी थे, बिना बिचारे सहसा काम करने वाले थे । ३१ वराह, महिष, व्याघ्र, वृक और कंक आदि के चिह्न उनकी पताकाओं में थे। अनेक प्रकार के वाहन, नहर, छत्र आदि उनके साथ थे । २१ युद्ध में पराजय के बाद भयभीत होकर कन्द, मूल और फल खाकर वे अपना निर्वाह करने लगे और उन्होंने अपनी दुष्टता छोड़ दो। १०० ३८९. पप० २७।। ३११. वही, २७।१०-११ । ३९३. वही, २७४६७ । ३९५. वहीं, २७१६९ । ३९७, वही, २७७१ । ३९९. वही, २७१७३ । ३९०. पद्मा २७७८.९ । ३९२, वही, पर्व २७ । ३९४, वही, २७।६८ । ३९६. वही, २७१७० 1 ३९८. वहीं, २७७२। ४००. वही, २७।२८।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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