________________
सामाजिक व्यवस्था : ७१
उपाध्याय--यह बालकों को शिक्षा देता था । १२ कुम्भकार-वह मिट्टी के बर्तन (घड़े आदि) बनाने का काम करता
धात्री राजघराने में दाय या धाय का कार्य करने वाली स्त्री को धात्री कहते थे। इसका भी महत्त्वपर्ण स्थान होता था। राजकन्या के स्वयंवर के समय वह दाहिने हाथ ग स्वयंसी दी र न्यः . पाथ चलती हुई झम-क्रम से जपस्थित कुमारों या राजाओं का परिचय देती थी 1३१५
कंचुकी ६-अन्तःपुर में रहने बाले वृद्ध, गुणवान् ब्राह्मण को जो सछ कार्यों के करने में कुशल होता है, उसे कंचुको कहते हैं । पद्मचरित के अष्टम पर्व में जलक्रीड़ा के समय राजकन्याओं की रक्षा के लिए साथ में कंचकी के जाने का उल्लेख है ।३८ अट्ठाईसवे पर्व में सीता स्वयंवर के अवसर पर कंचुकी आगत राजकुमारों या राजाओं का परिचय देता है ।३१९ उन्नीसवें पर्व में राजा दशरथ सुप्रभा के लिए कंचुको के हाथ से जिनेन्द्र भगवान् का गंधोदक भेजते है । ३७० इस पर दशरथ को अन्य रानियों सुप्रभा को बहुत सौभाग्यशाली मानती हैं, क्योंकि उन सबके लिए दशरथ ने दासियों के हाथ से गंधोदक भेजा था ।३७१
भाण्डागारिक (भण्डारी)-यह राजा के भण्डार का स्वामी होता था।
दासी-"जो स्त्रियाँ राजा के अन्तःपुर में सेवा का कार्य करती थीं। पचवरित में इनको निन्दमोय बतलाया गया है।
विदूषक-७४-मो अपने कार्यों, शारीरिक पेष्टाओं, वेप और बोली आदि
३६२. पप २५॥४१ ।
३६३, पथ. ५।२८७1 ३६४. वही, ६१३८१ ।
३६५. वही, ६।३८१-४२२ । ३६६. वही, ८।११। ३६७. अन्तःपुरचरो वृद्धो विप्रो गुणगणान्वितः ।
सर्थकार्यार्थ कुशला कंचुकीत्यभिधीयते ।। (नाट्यशास्त्र) ३६८. पम० ८।१११ । ३६९. वही, २८।२१०-२२३ ।
३७०. पन० २९।१२ । ३७१. वही, २९१३५, ३६ ।
३७२. वहीं, २९।१७ । ३७३. यहो, २९॥३५ ।
३७४. वही, ११२८।