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________________ सामाजिक व्यवस्था : ६५ इसके लिए युक्ति यह है कि जहां-जहाँ जाति भेद देखा जाता है वहां-वहां शारीर की विशेषता अधक्ष्य पायी जाती है जिस प्रकार कि मनुष्य, हायो, गधा, गाय, छोड़ा आदि में 'ना है !२' के अशिस 4 आतीय पुरुष के द्वारा सम्म जातीय स्त्री में गर्भोत्पत्ति देखी जाती है इससे सिख है कि ब्राह्मणादि में जाति वैचित्र्य नहीं है ।२५६ इसके उत्तर में यदि कहा जाय कि गधे के द्वारा घोड़ी में गर्भोत्पत्ति देखी जाती है, इसलिए उक्त युक्ति ठीक नहीं है ? तो ऐसा कहना भी उचित नहीं है, क्योंकि एक खुर आदि को अपेक्षा उनमें समानता पाई जाती है अथवा दोनों में भिन्न जातीयता ही है यदि ऐसा पक्ष है तो दोनों की जो सम्तान होगी वह विसदृश ही होगी जैसे कि गधा और घोड़ी के समागम से जो सम्तान होगी वह न घोड़ा ही कहलाबेगी और न गया ही किन्तु खच्चर नाम की धारक होगी। किन्तु इस प्रकार की सन्तान की विसदशता वाह्मणादि में नहीं देखी जाती । इससे सिद्ध होता है कि वर्ण व्यवस्था गुणों के आधीन है, जाति के आधीन नहीं है ।११७ जो यह कहा गया है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण की उत्पत्ति, भुजा से क्षत्रिय को उतात्ति, जंघा से वैश्य को उत्पत्ति और पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई, २५८ वह कथन ठीक नहीं है । यथार्थ में समस्त गुणों के वृद्धिंगत होने के कारण ऋषभदेव बह्मा कहलाते हैं, और जो सत्पुरुप उनके भक्त है, वे ब्राह्मण कहलाते हैं। मत अर्थात विनाश से बाण अर्थात् रक्षा करने के कारण भत्रिय कहलाते हैं, शिल्प में प्रवेश करने से वैश्य कहे जाते है और श्रुत अर्थात् प्रशस्त मागम से जो दूर रहते हैं वे शूद्र कहलाते हैं ।२१९ ब्राह्मण कौन ?-पपरित के अध्ययन से विदित होता है कि उस काल तक ब्राह्मण लोग अपने वास्तविक ब्राह्मणत्व को भूल चुके थे। यही कारण है कि ब्राह्मणत्व के प्रति आदर भाव दिखाते हुए भी, जो कम से ब्राह्मण नहीं है उनकी रविषेण ने पर्याप्त मर्त्सना की है। उनके अनुसार ब्राह्मण के हैं जो श्रुति की आज्ञा में द्विज के प्रथम माता से जन्म, दूसरे मौजाबन्धन, तीसरे यज्ञ की दीक्षा में ये तीन अन्म होते है। इन पूति तोम जन्मों में वेदग्रहणार्थ उपनयन संस्काररूप जो जन्म होता है उस जन्म में उस बालक को माता सावित्री और पिता आचार्य कहलाते हैं। 'शूदेण हि समस्तावधावद्वेदेन जायत ।।' मनुस्मृति २०१७२ २९५. पद्मः ११५१९५ । २९६. पप० ११.१९६ । २५७. वही, ११११९७-१९८ । २९८. वही, १११९९ । पुरुषसूक्त १२ २१९. वही, ११।२०१, २०२ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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