SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामाजिक व्यवस्था : ५९ शाध्य, प्रमाण, छन्द तथा आगम इनका भी अवसर के अनुसार यहां वर्णन हुआ हैं ।२१ अर्थशास्त्र२१२–पमचरित के ७३वे पर्व में अर्थशास्त्र का नाम निर्देश नीतिशास्त्र सीताहरण के माद शुफ आदि श्रेष्ठ मन्त्रियों को नुलाकर मन्दोदरी कहती है कि आप लोग राजा (रावण) से समस्त हितकारी बात क्यों नहीं कहते हैं । रावण ममस्त अर्थशास्त्र और सम्पूर्ण नीतिशास्त्र को जानते है तो भी मोह के द्वारा क्यों पीड़ित हो रहे हैं ।२६३ नाट्यशास्त्र-गीत, नृत्य और वादिन इन तीनों का एक साथ होना नाट्य कहलाता है ।१४ मान विद्या-मेय, देश, तुला और काल के भेद से मान चार प्रकार का होता ले ! मेय-प्रस्थ आदि के भेद से जिसके अनेक भेद है, उसे मेय कहते हैं ।।११ देश-वितस्ति (हाथ से नापना) आदि देवशमान कहलाता है।२५७ तुलामान-पल बादि (छटाक सेर आदि से नापना) तुलामान कहलावा काल मान-समय ( घड़ी घण्टा आदि से नापना) कालमान कहलाता है। २५१ __ मान की उत्पत्ति उपर्युक्त मान आरोइ, परीणाह, तिर्यगौरव और क्रिया से उत्पन्न होता है ।२२० अश्वविद्या-२८. पर्ष में एक मायामयी अश्व के वर्णन के प्रसंग में कहा गमा है कि वह घोटा अस्पम्त ऊँचा था, मन को अपनी ओर खींचने वाला था, उसके शरीर में अच्छे-अच्छे लक्षण देदीप्यमान हो रहे थे, दक्षिण अंग में महान् मावर्त थी, उसका मुख तथा उदर कृश था, वह अरपम्त बलवान था, सापों के २६१. पद्य० १२३३१८६ । २६२. पा. ७३।२८ । २६३, वही, ७३।२८ । २६४, वही, २४।२२ । २६५, 'मेयदेशसुलाकालमैदाम्मानं चतुर्विध' ।। पय ४२१६ । २६६. 'तत्र प्रस्थादिभिभिन्न मेयमानं प्रकीर्तितम् ॥' पन० २४१६० । २६७. 'देशमान वितस्स्यादि ।।' एमा २४॥६१ । २६८, 'तुलामानं पलादिकम् ॥' पप० २४।६१ । २६९, 'सपयामि तु पन्मानं तत्कालस्य प्रकीर्तितम् ॥' पण. २४।६१ । २७०. पच० २४।१२।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy