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५० : परि और
मासिक
ज्योतिष विद्या-ज्योतिष विद्या बहुत प्राचीन है । मिंगल कार्य से पूर्व ज्योतिषो द्वारा ग्रहों आदि की स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर शुभाशुभ मुहूर्त का ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता था। विवाह की तिथि ज्योतिषी निश्चित करते थे । १७० किसी शुभ दिन जब सौम्यग्रह सामने स्थित होते थे, कूरग्रह विमुख होते थे और लग्न मंगलकारी होती थी तब प्रस्थान किया जाता था । अंजना ने मामा से अपने पुत्र के ग्रहों के विषय में जानना चाहा । तब उसके मामा के पाश्चंग नामक ज्योतिषी ने पुत्र के जन्म का समरः पूछकर संक्षेप से उसके जीवन के विषय में बतलाया-'यह चैत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है, श्रवण नक्षत्र है, सूर्य दिन का स्वामी है । सूर्य मेष का है अतः उच्च स्थान में बैठा है। चन्द्रमा मकर का है अतः मध्यगृह में स्थित है। मंगल वप का है अतः मध्यस्थान में बैठा। बुध मीन का है वह भी मध्यस्थान में स्थित है। शुक्र और शनि दोनों ही मीन के हैं तथा उच्च स्थान में आरूढ़ है । उस समय मीन का ही उदय था। सूर्य पूर्ण दृष्टि से शनि को देखता है मौर मंगल सूर्य को अर्षदृष्टि से देखता है । बृहस्पति चन्द्रमा को पूर्ण दृष्टि से देखता है और चन्द्रमा भी अर्ध दृष्टि से बृहस्पति को देखता है । बृहस्पति शनि को पौन दृष्टि से देखता है और शनि बृहस्पति को अब दृष्टि से देखता है। बृहस्पति शुक्र को पौन दृष्टि से देखता है और शक भी बृहस्पति पर पौन दृष्टि डालता है | अवशिष्ट ग्रहों की पारस्परिक अपेक्षा नहीं है। उस समय इसके ग्रहों के उदय क्षेत्र काल का अत्यधिक बल है । सूर्य, मंगल और बृहस्पति इसके राज्ययोग को सूचित कर रहे है और शनि मुक्तिदायी योग को प्रकट कर रहा है । यदि एक बृहस्पति ही उच्च स्थान में स्थित हो तो समस्त कल्याण की प्राप्ति का कारण होता है। इसके तो समस्त ग्रह उच्च स्थान में स्थित है। उस समय ब्राह्म नाम का योग और शुम नाम का मुहूर्त था अतः ये दोनों हो ब्राह्म स्थान अर्थात् मोक्ष सम्बन्धी सुख के समागम को सूचित करते हैं । इस प्रकार इस पुत्र का यह ज्यातिश्चक्र सर्व वस्तु को दोषों से रहित सूचित करता है । १७२
बेद-पपचरित के ११३ पर्व में सर्वशसिद्धि के प्रसंग में वेद के दोष दिखाये गये हैं ।१७३ वेद का कोई कर्ता नहीं है इस बात को अयुक्तिसंगत सिद्ध कर वेद का कोई कर्ता है, इस पक्ष में अनेक प्रमाण दिये गये हैं। इसमें प्रमुख युक्ति यह है कि यूंकि वेद पद और वाक्यादि रूप है तथा विधेय और प्रतिषष्य अर्थ से युक्त है अतः किसी कर्ता द्वारा बनाया गया है। जिस प्रकार मैत्र का
१५०, पद्म १५४९३ । १७२, बही, १७।३६४-३७७ ।
१७१. पन.८१८, १९ । १७३. वही, १११८५ ।