________________
सामाजिक व्यवस्था : ४९
·
अथवा गर्त आदि से युक्त था। जिस प्रकार व्याकरण ( उदास, अनुदात्त स्वरित आदि) अनेक प्रकार के स्वरों से पूर्ण है उसी प्रकार वह पर्वत भी अनेक प्रकार के स्वरों अर्थात् प्राणियों के शब्दों से पूर्ण था । १३४ इस उपमा में आए धातु, गण, सुवर्ण पद, प्रकृति, बिल तथा स्वर शब्द व्याकरण के विकास का द्योतन करते हैं । व्याकरण शास्त्र के नाम, आख्यात, उपसर्ग, निपात जैसे पारिभाषिक शब्दों का भी यहाँ प्रयोग हुआ है ।
गणितशास्त्र - पद्मचरित में इसे सांख्यिकी कहा है । जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के पद्मक नगर के रम्भ नामक पुरुष को गणित शास्त्र का पाठी कहा गया है ।
१६६
१६७
धनुर्वेद - राजा सहस्ररश्मि के ऊपर जब रावण ने बाण छोड़े तब सहस्ररश्मि ने कहा कि हे रावण ! तुम तो बड़े धनुर्धारी मालूम होते हो | यह उपदेश तुम्हें किस गुरु से प्राप्त हुआ है ? अरे छोक ! पहले धनुर्वेद पढ़ और अभ्यास कर, पश्चातू मेरे साथ युद्ध करना पच्चीसवें पर्व में राजगृह नगर के वैवस्वत नामक एक विद्वान् का उल्लेख किया गया है जो धनुबिया में निपुण था और विद्याध्ययन में श्रम करने वाले एक हजार शिष्यों सहित था । कम्पिल्यनगर के शिखी नामक ब्राह्मण का लड़का ऐर उस के पास विधिपूर्वक विद्या सीखने लगा और कुछ ही समय में उसके हजार शिष्यों में भी अधिक निपुण हो गया । ११८ इससे धनुर्वेद के सीखने-सिखाने का प्रचलन सूचित होता है ।
आरण्यक शास्त्र - पद्मचरित के ११ वें पर्व में क्षीरकदम्बक द्वारा नारद आदि शिष्यों को आरण्यक शास्त्र १६९ पढ़ाने का उल्लेख है ।
१६४. नानाधातु समाकीर्ण गणैर्युक्तं सहस्रशः । सुवर्णघटनारम्यं कुरमनुगतैर्युक्तं
पदपंक्तिभिराजितम् । पद्म० ९।११२ । विकारविलसंयुतम् ।
स्वरर्भहु विश्वैः पूर्ण लब्धव्याकरणोपमम् ॥ पद्म० ९।११३ ।
१६५. नामाख्यातोंपसर्गेषु निपातेषु न संस्कृता ।
प्राकृती शौरसेनी च भाषा यत्र श्रयी स्मृता ।। ० २४|११ ।
१६६. पद्म० ५।११४ ।
१६७. अहो रावण धानुष्को महानस कुलस्तव ।
उपदेशो समायातो गुरोः परमकौशलात् ॥ पद्म० १० १२७ । वत्स तावद्धनुर्वेदमधव कुरु च श्रमम् ।
ततो मया समं युद्धं करिष्यसि नयोज्झितः । पद्म० १०।१२८ | १६८. पद्म० २५१४६, ४७ । १६९. पद्म० ११ । १५ ।
Y