________________
४८ : पदमचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
कराया जाता है, उसे नैमिसिक कहते हैं। इस लिपि के प्राच्य, मध्यम, यौधेय, समाद्र आदि देशों की अपेक्षा अनेक अवान्तर भेद होते हैं ।
विद्या प्रदाता-विधा प्रदाताओं की श्रेणी में गुरु,१५८ उपाध्याय, १५९ घिद्वान, १५० यति,११ आचार्य १२ तथा मुनि नाम आये है।
विद्या प्रदाता के गुण-विद्या प्रदाता को महाविद्याओं से युक्त, पराक्रमी, प्रशान्तमुख, धीरवीर, सुन्दर आकृति का धारक, शुक्ष भावनाओं से युक्त, अल्प परिग्रह का घारी, उत्तम व्रतों से युक्त, धर्म के रहस्य को जानने वाला, कला रूपी समुद्र का पारगामी, शिषम की शक्ति को जानने वाला तथा पात्र अपात्र का विचार करने वाला होना चाहिए । १६३
विद्याओं के प्रकार-गद्मचरित से व्याकरण, गणितशास्त्र, धनुर्वेद, अस्त्रशास्त्र विद्या, आरण्यक शास्त्र, ज्योतिष विधा, जैनदर्शन, वेद, वेदान्त, बौद्धदर्शन, निमितविद्या, शकुन विद्या, आरोग्यशास्त्र, कामवाास्त्र, संस्कृत, प्राकृत शौरसेनी आदि भाषाएँ. लोकशता, संगीन विद्या, नत्यविद्या, कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र आदि विद्याओं के संकेत मिलते हैं।
व्याकरण विद्या-व्याकरण विद्या का उस समय तक अधिक विकास हो गया था, ऐसा पद्मचरित के अध्ययन से विदित होता है। नवम सर्ग में कैलाश पर्वत की उपमा व्याकरण से देते हुए रविषेण कहते है-जिस प्रकार व्याकरण अनेक धातुओं से युक्त है उसी प्रकार वह पर्वत अनेक धातुओं (बांदी सोने आदि) से युक्त था, जिस प्रकार व्याकरण हजारों गणों (शब्द समूहों) से युक्त था उसी प्रकार वह पर्वत भी हजारों गणों अर्थात् साधु समूहों से युक्त था । जिस प्रकार व्याकरण सुवर्ण अर्थात् उत्तमोत्तम वर्गों को घटना से मनोहर है उसी प्रकार बह पर्वत भी सुवर्ण अर्थात् स्वर्ण की घटना से मनोहर था। जिस प्रकार ध्याकरण पदों अर्थात् सुबन्त तिइन्त रूप पाद समुदाय से युक्त है उसी प्रकार वह पर्वत भी अनेक पदों अर्थात् स्थानों या प्रत्यन्त पर्वतों अथवा चरण चिह्नों से युक्त था । जिस प्रकार व्याकरण प्रकृति अर्थात् मूल कान्दों के अनुरूप विकारों अर्थात प्रत्यवादिजन्य विकारों से युक्त है उसी प्रकार वह पर्वत भी प्रकृति अर्थात स्वाभाविक रचना के अनुरूप विचारों से युक्त था जिस प्रकार व्याकरण बिल अति मूलसूत्रों से युक्त है उसी प्रकार वह पर्वत भी बिल अर्थात् पर पृथ्वी
१५८, पद्म २६।६।।
१५९. पद्म ३९।१६३ । १६७. वहो, ३९।१६० ।
१६१. वही, ३९।३०३ । १६२, वही, २५१५३ । १६३, वही, १००।३२,३३,३४, १००।५०,५२ ।