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३४ : पदमचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
हैं वे हो ब्राह्मण कहलाते है । इसके विपरीत जो सब प्रकार के बारम्भ में प्रवृत्त है तथा निरन्तर कुशील में लीन रहते हैं ये केवल यह कहते है कि हम ब्राह्मण हैं, परन्तु क्रिया से ब्राह्मण नहीं हैं । १७७ जिस प्रकार कितने ही लोग सिंह, देव अथवा अग्नि नाम के धारक हैं उसी प्रकार व्रत से भ्रष्ट रहने वाले ये लोग भी ब्राह्मण नाम के धारक है, इनमें वास्तविक जाह्मणत्व कुछ भी नहीं है। १७८ जो ऋषि, संयत, धीर, शान्त, दान्त और जितेन्द्रिय हैं ऐसे में मुनि हो धन्य है तथा वास्ततिम पहाण है। १७१
सामान्यतः परिव्राजक शब्द से ब्राह्मण धर्म के अनुयायी विशेष प्रकार के साघुओं का ही बोध होता है लेकिन पद्मचरित के अनुसार जो परिग्रह को संसार का कारण समझ उसे छोड़ मुक्ति को प्राप्त करते है वे परिवाजक कहलाते हैं। यथार्थ में निम्रन्थ मुनि ही परिणामक है, ऐसा जानना चाहिए । १८०
८५३ पर्व में वैदिक धर्म द्वारा उपदिष्ट पशुहिंसा के संकल्प का दुष्परिणाम बतलाया गया है ।१८९
चतुर्थ पर्व में ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन कर दीक्षा से च्युत भृगु, अंगिशिरस, वन्हि, कपिल, अत्रि, विद आदि अनेक साधुओं का निर्देश किया गया है, जो अज्ञानवश वल्कलों को धारण करने वाले तापसी हुए थे । १८२ इन सबके नाम वैदिक ऋषियों की परम्परा में मिलते हैं। सप्तम पर्व में इस प्रकार के मनुष्यों को क्रियाओं के विषय में कहा गया है कि भले ही पृथ्वी पर सोबे, चिरकाल तक भोजन का त्याग रख्ने, रात-दिन पानी में डूबा रहे, पहाड़ की चोटी से गिरे और जिससे मरण भी हो जाये ऐसी शरीर सुलाने वाली क्रियायें करे तो भी पुण्यरहित जीव अपना मनोरथ सिद्ध नहीं कर सकता । १८५
एकादश पर्व दार्शनिक विवेचन की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है इसमें हिंसामय पज्ञ की उत्पत्ति, अनेक यज्ञों तथा उनमें की जाने वाली क्रियाओं का उल्लेख, यजों का खण्डन, सर्वज्ञ नहीं है, इसका उपस्थापन पूर्वक सर्वश सिद्धि, पाहाणादि चार वर्षों के विषय में जन्मना मान्यता का विरोध, सृष्टि कर्तृत्व के विषय में पूर्वपक्ष की स्थापना तथा उसका खण्डन आदि महत्वपूर्ण विषय वर्णित हैं। इसके माध्यम से जैनधर्म और ब्राह्मण धर्म को मान्यतायें तथा उनके विभेद को अच्छी तरह समझा जा सकता है।
१७६. पद्मः १०९।८१ । १७८. घही, १०९६८३ । १८.. दही, १०९।८६ । १८२. वही, ४१२६ ।
१७७. पदमः १०९८२ । १७९. वही, १०९८४ । १८१. वही, ८५।५७-६२ । १८३. वही, ७३१९-३२० ।