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पद्मचरित का परिचय : ३१
लिखा है कि राक्षसों के राजा रावण ने इन्द्र को अपने बन्दीगृह में पकड़कर रखा था और उसने बन्धन से बद्ध होकर चिरकाल तक लंका के बन्दीगृह में निवास किया था । ऐसा काहना मगों के द्वारा मिह का वध होना, तिलों के द्वारा पिलाओं का पोसा जाना, पनियां सौंप के द्वारा नाग का मारा जाना और कुत्ता के द्वारा गजराज का दमन होने के समान है ।१५१ वत के घारक राम ने स्वर्णमृग को मारा था और स्त्री के पीछे सुग्रीव के बड़े भाई बालि को जोकि उसके पिता के समान था, मारा था । वह सब कथानक युक्तियों से रहित होने के कारण श्रद्धान के योग्य नहीं है । ६२.
ब्राह्मणों की माम्यता के विषय में अश्रद्धा का भाव होते हए भी काव्य में अलंकार आदि के द्वारा रसात्मकता उत्पन्न करने के लिए रविण ने पौराणिक ब्राह्मण आख्यानों और मान्यताओं का निर्देश पर्याप्त रूप से किया है, यह उनको सहिष्णुता का परिचायक है। द्वितीय पर्व में राजगृह नगर का वर्णन करते हुए कवि कहता है
राजगृह नगर धर्म अर्थात् यमराज के अन्तःपुर के. पान संभाग अपनी ओर खींचता रहता है क्योंकि जिस प्रकार यमराज का अन्तःपुर के शर से युक्त शरीर को धारण करने वाली हजारों महिषियों अर्थात् भैसों से मुक्त होता है उसी प्रकार राजगृह नगर भी केशर से लिप्त शरीर को धारण करने वाली हमारों महिषियों अति रानियों से सुशोभित है ।१५३ ___राजगृह नगर की स्त्रियों का वर्णन करता हुआ कवि "गौर्यश्च विभवाश्रयाः१५ पद का प्रयोग करता है जिसका तात्पर्य यह है कि उस नगर की स्त्रियाँ ''गौरी" अर्थात् पार्वती होकर भी "विभवाश्या' अर्थात् महादेव के माश्रय से रहित यों (पस में--गौर्यः अर्थात् गौर वर्ण होकर विभवाश्रयाः अर्थात् सम्पदाओं से सम्पन्न थी)।
एक स्थान पर राजगृह नगर का वर्णन करते हुए कवि कहता है
"वह नगर (राजगृह) मानों श्रिपुर नगर को ही जीतना चाहता है क्योंकि जिस प्रकार त्रिपुर नगर के निवासी मनुष्य 'ईश्वरमार्गणः' अर्थात् महादेव के माणों के द्वारा किये हुए सन्ताप को प्राप्त है उस प्रकार उस नगर के मनुष्य
१६१. पदम २।२४६-२४७ । १६२. पदम० २१२४८-२४९ । १६३. महिषीणां सहस्र यस्कुलमाञ्चितविग्रहः।
धर्मान्तःपुरनिर्भासं पत्ते मानसकर्षणम् ।। पद्म २।३४ । १६४. पदम० २१४५ ।