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________________ २८८ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादिप्त संस्कृति में तथा कला के संवर्धन में विशेष महत्त्व रहा है। कहानी लिखने में जैनियों को शायद ही कोई पराजित कर सके। भारतीय कथा साहित्य में राम-कथा का अस्तित्व बहुत प्राचीन है। वेद, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् प्रभूति जितने भो भारतीय साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ है उन सबमें सर्वत्र रामकथा की व्यापकता वर्तमान है ।२ बौद्ध और जैन साहित्य में भी रामकथा को विशिष्ट महत्त्व दिया गया है। जैन कवि विमलसूरि रचित पउम परिय प्राकृत भाषा का रामकथा सम्बन्धी आद्यग्रन्थ है। विमलमूरि के बाद संस्कृत में रविषेण ने पमपरित की रचना की। पपपरित संस्कृत में जैन रामकथा का आद्य ग्रन्थ होने के साथ-साथ संस्कृत जैन कथा साहित्य का भी आद्यपन्य है । भारतीय कथा साहित्य को उपदेशात्मक, मनोरंजक और शिक्षाप्रद इस प्रकार तीन भागों में विभक्त किया गया है। इनमें से उपदेश प्रधान कथाओं का यह श्रेष्ठ-भांडार है 1 उपदेश के साथ-साथ इसमें शिक्षा और मनोरंजन के भी तत्त्व विद्यमान है। प्रषानता उपदेश की ही है। राम, लक्ष्मण और रावण को जैन परम्परा में प्रेसठ शलाका पुरुषों (महापुरुष, विशिष्ट पुरुष) में स्थान दिया गया है। प्रेसठ पालाका पुरुषों के अन्तर्गत २४ तीपंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ नारायण बोर ९ प्रतिनारायण का समावेश होता है । इनका उल्लेख परवरित में किया गया है। राम, लक्ष्मण और रावण क्रमशः आठवें बलदेव, नारायण' और प्रतिनारायण' माने गये है। यही यह मी जात होता है कि नारायण बलदेव के साथ मिलकर प्रतिनारायण का वध करते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें (पारित की रामकथा में) निम्नलिखित अन्य विशेषतायें मिलती है यहाँ हनुमान, सुग्रीव आदि वानर नहीं किन्तु विद्याधर थे। उनके छत्र आदि में वानर का चिह्न होने के कारण ये बानर कहलाने लगे। राक्षसों के विषय में कहा गया है कि राक्षसवंशी विद्याधर राक्षस जातीय देवों के द्वीप की रक्षा करते थे इसलिए वह दोष राक्षस (द्वीप) के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उस द्वीप के रक्षक विद्याधर राक्षस कहलाने लगे ।'' इस उल्लेख २. वाचस्पति मेरोला-संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, १० १५५ । ३. वही, पृ. ८८२ । ४. पम पर्व २० । ५. पपः २१।। ६. वही, ३५१४४, १०३।४०। ७. वही, ७३१९९-१०२ । ८. वही, ७३३९९-१०२,७३।११८-१२२ एवं रामकथा, पृ० ६६ । ९. पा० ६२१४ । १०. पप ५।१८३, ४३१३८, ३९, ४० ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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