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अध्याय ७
पद्मचरित का सांस्कृतिक महत्त्व
पाचरित में उस्कृष्ट काव्य गुणों के अतिरिक्त सांस्कृतिक सामग्री विपुल रूप में पाई जाती है। यह एक महत्त्वपूर्ण मानवीय समाजशास्त्र है। मनुष्य अपनी प्रारम्भिक प्राकृतिक अवस्था में किस प्रकार रहता था इसका सजोष वर्णन उपस्थित करने के साथ-साथ यह तत्कालीन युग की सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक स्थिति पर प्रकाश डालता है। उस समय के लोगों का भोजन-पान क्या : 5 की श्रेषभूषा कला हो। यी लोग अपना मनोरंजन कैसे करते थे? उनका रहन-सहन किस प्रकार का था ? कौन-कौन से कला-कौशल समाज में विकसित थे? नगर-निर्माण, शासन व्यवस्था, युद्ध-संचालन, अस्त्र-शस्त्र, यातायात के साधन इत्यादि कैसे थे? सामाषिक-पारिवारिक सम्बन्ध किस प्रकार के ये ? विवाह और प्रेम का आर्दश क्या था? समाज में नारियों का क्या स्थान या ? शिक्षा कहाँ तक विकसित हुई थो ? जीवन के प्रति लोगों का क्या दृष्टिकोण था? उनकी लौकिक एवं पारलौकिक महत्त्वाकांक्षायें क्या थीं ? इस प्रश्नों का उसर इनमें सम्पक रूप से मिलता है। इस प्रन्य में जीवन का सभी दृष्टिकोणों से विवेचन किया गया। नगर, ग्राम, नदी, पर्वत, वन प्रदेश, विभिन्न प्रकार की वनस्पति, जीव-जन्तु, राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, सैनिक, गृहस्थ, मुनि आदि का इसमें पर्याप्त विवेचन उपलब्ध होता है। अतः सांस्कृतिक दृष्टि से इस प्रम्ब का विशेष महत्व है।
भारतीय कथा साहित्य में पधचरित का स्थान भारतीय कथा साहित्य बहुत विशाल है। प्राकृत, पालि, वैदिक संस्कृत, लौफिक संस्कृत, अपभ्रंश तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं में इस प्रकार का साहित्य विपुल रूप से लिखा गया। कथा साहित्य का उदय भारतवर्ष में हमा और इसने संसार के सामने इस साहित्यिक साधन की उपयोगिता सर्वप्रथम प्रवशित की।' भारत में कयामें केवल कौतुकमयी प्रवृत्ति को चरितार्थ करने के अतिरिक्त पार्मिक शिक्षण के लिए भी प्रयुक्त की जाती थी और यही कारण है कि ब्राह्मणों ने, जैनियों ने तथा बौद्धों ने समान भाव से साहित्य के इस अंग का परिवर्षन और उपहण किया है। बौखों के जातकों का साहित्य के इतिहास . १. अल्वेव उपाध्याय-संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ० ४२४ ।