________________
पद्मचरित का सांस्कृतिक महत्त्व : २८९
में रावण आदि राक्षस योनि वाले न होकर राक्षसवंशी विद्याधर राजा ठहरते हैं । पद्मचरित के पंचम पर्व में राक्षस वंश की कथा दी गई है। तदनुसार मनोवेग नामक राक्षस के राक्षस नाम का ऐसा प्रभावशाली पुत्र हुआ कि उसके नाम से उसका वंश ही राक्षस वंश कहलाने लगा ।'
११
रचना की । तदनुसार
थे
वे पृथ्वी पर अमुर २
१३
असुर यक्ष, किन्नर, गन्धर्व आदि की उत्पत्ति के विषय में कहा गया है कि इन्द्र नामक विद्याधर ने इन्द्र के समान विभूति की विद्याधर के असुर नामक नगर में जो विद्याधर रहते नाम से प्रसिद्ध हुए । यक्षगीत नगर के विद्याधर वक्ष' कहलाए। किन्नर नामक नगर के निवासी किन्नर १४ कहलाए और गन्धर्व नगर के रहने वाले विद्यावर गन्ध नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी प्रकार अश्विनीकुमार विश्वावसु और वैश्वानर आदि विद्याबल से समन्वित ( विधाघर) थे। ये देवों के समान क्रीड़ा करते थे। १
१५
रावण का प्रारम्भिक नाम दशानन था । हजार नागकुमार द्वारा रक्षित एक हार को रत्नश्रवा के केकसी से उत्पन्न प्रथम पुत्र ने खींच लिया। उस हार में बड़े-बड़े स्वर लगे हुए थे। उसमें असली मुख के सिवाय नी मुख और भी प्रतिविम्बित हो रहे थे इसलिए उस बालक का नाम दशानन नाम रखा गया । १७ रावण नाम उसका बाद में पड़ा जब कि बालि मुनिराज के प्रभाव से वह कैलास पर्वत नहीं उठा सका | पर्वत के बोझ से वह दबने लगा। उस समय चूंकि उसने सर्वप्रयस्त से चिल्ला कर समस्त संसार को शब्दायमान कर दिया था इसलिए वह पीछे चलकर रावण इस नाम को प्राप्त हुआ
डॉ० हीरालाल ने पउमचरिय को कतिपय
विशेषताओं का उल्लेख किया है । उनके अनुसार पद्मवरित उपचारेय का ही पल्लवित अनुवाद है अतः पउमचरिय को उन विशेषताओं को पद्मचरित को भी विशेषतायें कहा जा सकता है । पद्मचरित को देखने पर इन विशेषताओं की पुष्टि भी होती है। ये विशेषतायें निम्नलिखित है
११. पद्म० ५। ३७८ ।
१३. वही, ७ ११८ ।
१५. वही, ७ ११८ ।
१२. बही, ७ ११७ । १४. वही, ७१११८ ।
१६. वहीं, ७।११९ ।
१७. बड़ी, ७२१३, २१४, २२२ ।
१८. खं च सवं यत्नेन कृत्वा रावितवान् जगत् ।
यतस्ततो गतः पश्चाद्रावणाख्यां समस्तगाम् ।। पय० ९।१५३ ।
१९. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान ( डॉ० हीरालाल ), पु० १३२ ।
१९