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________________ २४२: पद्मचरित और उसमें प्रतिपावित संस्कृति २२. तर विचार में लीन रहते हैं। २३. अधिकांश समय सद्ध्यान में लीन रहते हैं ।' २४. मुनिधर्म का सर्वोत्कृष्ट गुण यह है कि उस धर्म से मोक्ष की प्राप्ति होती है । ४ मुनि के आवश्यक धर्म-पांच महाव्रत, ८५ परिषहों को सहन करना,' ८ ८८ आठ भेदों को नष्ट करना करना, सात भयों से रहित होना.' धर्म और अनुक्षा से युक्त होना ये सब मुनि के आवश्यक धर्म हूँ ।" धारण करना, ८७ पांच महाव्रत - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पाँच पापों के पूरी तरह से (सर्वदेश) त्याग करने की पंच महाव्रत कहते हैं । ९१ एषणा, आदान निक्षेपण और उत्सर्ग ये पाँच पांच समिति ईर्ष्या, भाषा, समितियाँ हैं । १२ इयसमिति – नेत्रगोचर जीवों के समूह से बचकर गमन करने वाले सुनि के प्रथम ईर्यासमिति होती है। यह अत्तों में शुद्धता उत्पन्न करती है । १३ भाषासमिति- -सदा कर्कश और कठोर वचन छोड़कर यत्नपूर्वक प्रवृत्ति करने वाले यति का धर्म कार्यों में बोलना भाषा समिति है । ૧૪ splendo एषणासमिति - शरीर की स्थिरता के लिए पिण्ड शुद्धि पूर्वक मुनि का आहार ग्रहण करना एषणा समिति है ।' 14 तीन गुप्तियों का पाँच समिति, अट्ठाईस मूलगुणों का पालन ८९ चारित्र, - आदाननिक्षेपण समिति — देखकर योग्य वस्तु का रखना और उठाना आदान निक्षेपण समिति है ।" ९७ उत्सर्ग समिति -- इसे प्रतिष्ठापन समिति भी कहते हैं । प्रासुक (स्वच्छजीव-जन्तु से रहित ) भूमि पर शरीर के भीतर का मल छोड़ना उत्सर्ग समिति है । ८२. पद्म० ८९११०८ । ८४. वही, ६१२९५ । ८६. वही, १०६ । ११४ । ८८. वही, १०६।११३ । ९०. वही, १९१२१९ । ९२. वही, १४ । १०८ । ९४. वही, २।१२३ ॥ ९६. बही, २।१२५ । ८३. पद्म० ३९।३३ । ८५. वही, २०११४९ । ८७. वही, ३७।१६५ । ८९. वही, १०९१३० । ९१. वही, १४ ३९ । ९३. वही हरिवंशपुराण २११२२ । ९५. हरिवंशपुराण २।१२४ । ९७. वही, २।१२६ ॥
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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