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________________ धर्म और दर्शन : २४१ ८. मुनिजन अत्यन्त धीरवीर गौर सिंह के समान पराक्रमी होते हैं।" ९. मनि लोग केशों का लोच करते हैं। १०. मुनिजन आत्मा के अर्थ में तत्पर रहते हैं। ११, चारित्र का भार धारण करते हैं। १२. मुनिजन उत्तम बुद्धि को धर्म में लगाकर मनुष्यों का जैसा शुभोदय से सम्पन्न परम प्रिय हित करते हैं वैसा हित, न माता करती है म पिता करता है, न मित्र करता है न सगा भाई ही करता है।" १३. मुनिजन पन्द्रम्प के माल गौम गौर दिलकर ( सूर्य ) के समान देदीप्यमान होते हैं । २ १४. से समुद्र के समान गम्भीर, सुमेरु के समान धोरवीर और भयभीत कछुए के समान समस्त इन्द्रियों के समूह को अत्यन्त गुस रखने वाले होते हैं।" १५. मे क्षमा धर्म को धारण करते है । कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) के उद्रेक से रहित और चौरासी लाम्न गुणों से सहित है।४ १६. मुनि लोग सरल भावों को धारण करते है ।७५ १७. गाँव में एक रात्रि और नगर में पांच रात्रि तक हो ठहरते हैं।" १८. पर्वत की गुफाओं, नदियों के तट अथवा भाग बगीचों में ही उनका निवास होता है। १९, अन्याय करने वाले का कुछ भी प्रतिकार नहीं करते हैं। उपसर्ग (विघ्न-बाधा) को सहन करते है। २०. यह भावना रखते हैं कि ज्ञानदर्शन ही मेरी आत्मा है । दूसरे पदार्थ के संयोग से होने वाले अन्य भाव पर पदार्थ हैं । २१. मरण समय समात्रि धारण करते हैं और सोचते है कि समाधिमरण के लिए न तृग ही संथारा (आसन) है, न उत्तम भूमि ही संथारा है किन्तु कलपित बुद्धि से रहित आत्मा ही संघारा है।" ६७. पद्म० १४।१७२ । ६१. वही, ३७।१६३॥ ७१. वहीं, ६१२१ । ७३, वही, १४११७५ । ७५. बही, १०९५८५ । ७७. वही, १०६।११८ । १७९, वही, ४१५६५ । ८१. वहीं, ८९:११०। ६८. पम० ३७११६१ । ७०. वही, ३७।१६४ । ७२. बड़ी, १४३१७४ 1 ७४, वहो, १४६१७६ । ७६. वही, १०६।११७ । ७८. वही, ४११७० । ८०. वही, ८९११०९।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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