SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति मीना भी उचित नहीं है, फिर पानी की तो बात ही क्या है ?१४ जय नेत्र अपना व्यापार छोड़ देते हैं, जो पाप की प्रवृत्ति होने से अत्यन्त दारुण है, जो नहीं दिखने वाले सूक्ष्म जन्तुओं से सहित है तथा सूर्य का अभाव हो जाता है ऐसे समय भोजन नहीं करना चाहिए । ५५ आरम्भ का त्याग किया ७७ ५८ अनगार धर्म (मुनि श्रम) - जब सब जाता है तभी मुनियों का धर्म प्राप्त होता है ।' ** यह धर्म बाह्य वस्तुओं की अपेक्षा से रहित है । " अर्थात् अन्तर्मुखी है । आकाशरूपी वस्त्र धारण करने बाले अर्थात् नग्न दिगम्बर मुनियों के ही होता है । मुनि लोग यमी, वीतराग, निर्मुक्त शरीर, निरम्बर, योगी, ध्यानी, ज्ञानो, निस्पृह और बुध हैं अतः ये ही वन्दना करने योग्य हैं । चूंकि ये निर्वाण को सिद्ध करते हैं, इसलिए साधु कहलाते हैं, उत्तम आधार का स्वयं आचरण करते हैं तथा दूसरों को भी आपरण कराते हैं इसलिए आचार्य कहे जाते हैं । ये गृहत्यागी के गुणों से सहित हैं तथा शुद्ध भिक्षा से भोजन करते हैं, इसलिए भिक्षुक कहलाते हैं और उज्ज्वल कार्य करने वाले हैं अथवा कर्मों को नष्ट करने वाले तथा परम निर्दोष धम में वर्तमान है इसलिए श्रमण कहे जाते है। १९ मुनि तथा मुनिधर्म के गुण -- पद्मचरित में मृनि तथा सुनिधर्म के बहुत से गुणों का निर्देश किया गया है जो निम्नलिखित हैं प्रकार के १. मुनियों का धर्म शूरवीरों का धर्म है 10 २. मुनिधर्म शान्त दशा रूप हैं " I ३. मुनिधर्म सिद्ध है 1२ ४. मुनिधर्म साररूप है । ६६ हूँ। १५ ייני ५. मुनिधर्म क्षुद्रजनों को भय उत्पन्न करने वाला है १४ ६. मुनि लोग अपने शरीर में राग नहीं करते हैं ६५ ७. मुनिजन पाप उपार्जन करने वाले ५४. १५० १४/२७४ | ५५* वही, ६।२९३ । ५७. वही, ५९. वही १०९८९-९० । ६१. वही, ३०।८३ । ६३. वही, ६५. वही, १४०१७१ । बाला मात्र परिग्रह से रहित होते ५५. पद्म० १०६ । ३२, ३३ । ५६. वही, ३३।१२१ । ५८. वहो, १०९८८ । ६०. वही ३०/६३ ६२. वही, ६४. वही, ६६. षहो, १४।१७२ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy