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धर्म और दर्शन : २३९ ब्रह्मपर्वत की भावनायें स्त्रीराग कथा श्रवणत्याग-स्त्रियों में राग बढ़ाने वाली फयाओं के सुनने का त्याग करना।
तन्मनोहराङ्गनिरीक्षण त्याग-स्त्रियों के मनोहर अंगों के देखने का त्याग करना।
पूर्वरतानुस्मरण त्याग अग्रत अवस्था में भोगे हुए विषयों के स्मरण का श्याग
सुष्येष्टरस त्याग-कामवर्षक गरिष्ठ रसों का त्याग करना। स्वशरीर संस्कार त्याग- अपने शरीर के संस्कारों का त्याग करना । ये पाँच" ब्रह्मचर्य व्रत की भावनायें हैं।
परिग्रह त्यागवत की भावनायें-स्पर्श आदि पाँच इन्द्रियों के इष्ट अनिष्ट विषयों में कम से रागवेष का त्याग करना । ये पाच परिग्रहत्यागनत की भावनायें
नियम गृहस्थ मधु, मध, मांस, जुआ, रात्रिभोजन और वेश्यासमागम से जो विरक्ति होती है उसे नियम कहते हैं ।१° एक स्थान पर कहा गया है कि जो मनुष्य मधु मांस और मदिरा नादि का उपयोग नहीं करते हैं वे गृहस्यों के आभूषण पद पर स्थित हैं।' पचचरित के चौदहवें पर्व में रविषेण ने करीव ५० श्लोको में रात्रि भोजन करने वालों को निन्दा तथा न करने वालों की प्रशंसा की है।५२ जिनके नेत्र अन्धकार के पटल से आच्छादित है और बुद्धि पाप से लिप्त है ऐसे प्राणी रात के समय मक्खी, कोड़े तथा बाल आदि हानिकारक पदार्थ खा जाते हैं । यो रात्रि भोजन करता है वह हाकिनी प्रेत भूत आदि नीच प्राणियों के साप भोजन करता है । जो रात्रि भोजन करता है वह कुत्ते, चूहे, बिल्ली आदि मांसाहारी जीवों के साथ भोजन करता है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि जो रात में भोजन करता है वह सब अपवित्र पदार्थ खाता है। सूर्य के अस्त हो जाने पर जो भोजन करते हैं उन्हें विद्वानों में मनुष्यता से बंधे पशु कहा है। रात में अमृत
४८. 'स्त्रीरागकथाश्रवणसन्मनोहरांगनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीर
सस्कारत्यागाः पञ्च-तत्त्वार्थसूत्र ७७ ४९. मनोज्ञामनोजेन्द्रियविषयरागहषवर्धनानि पञ्च ७८। ५०. पच० १४।२०२।
५१. वही, १४।२१६ । ५२. वही, १४।२६७.३१८ । ५३. वही, १४।२७१-२७३ ।