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पद्मचरित का परिचय : ९
शत्रुघ्न के पूर्वभवों का वर्णन है । ९२वें गर्व में सप्तर्षियों (सात मुनियों) को सीता आहार देती है । ९३ पर्व में राम को श्रीदामा और लक्ष्मण को मनोरमा कन्या की प्राप्ति होती है । ९४वें पर्व में राम-लक्ष्मण का अनेक विद्याधर राजाओं का वश में करना तथा लक्ष्मण की अनेक स्त्रियों और पुत्र का वर्णन है । ९५वें पर्व में सीता स्वप्न देखती है। द्वितीय स्वप्न कुल अनिष्टकारक जान उसकी शान्ति के लिए जिनेन्द्रार्चन करती है । ९६वें पर्व में प्रजा राम से सीता के लोकापवाद की चर्चा कहती है । ९७वें पर्व में कृतान्तवक सेनापति जिन मदिरों के दर्शन कराने के बहाने जीवा की जंगल में ले जाकर छोड़ आता है । ९८ पर्व में जंघ सीता को धर्म बहिन समझकर सान्त्वना देता है । ९९ पर्व में सोता को वजंघ बड़ी विनय के साथ अपने यहां रखता है। कलान्तवक्र सेनापति लौटकर राम को सीता का संदेश सुनाता है। १०० पर्व में सीता के गर्भ से अनङ्गलवण और मदनाङ्कुश की उत्पत्ति होती है । १०१ वें पर्व में वञ्चजंत्र अपनी बत्तीस पुत्रियां यण को देने का निश्चय करता है। पृथु की पुत्री कनकमाला का अङ्कुश से विवाह होता है। दोनों पुत्र दिग्विजय को निकलते हैं । १०२वें पर्थ में राम-लक्ष्मण के विषय में जानकारी प्राप्त कर दोनों पुत्र सेना सहित जाकर अयोध्या को घेर कर घोर मृद्ध करते हैं । १०३ पर्व में पितापुत्रों का मिलन होता है १०४ में पर्व में सोता की अग्नि परीक्षा के लिए अग्निकुण्ड बनाया जाता है। १०५ वें पर्व में सीता की अग्नि परीक्षा तथा उसका चिराग वणित है । १०६ वें पर्व में राम, लक्ष्मण और सीता के भवान्तरों का विधेचम है । १०७ पर्व में कृतान्तक्क सेनापति दोक्षा ले लेता है । १०८वें पर्व में सीता के दोनों पुत्र लवण और अङ्कुश के चरित्र का निरूपण है । १०९ पर्व में सीता का तैंतीस दिन सल्लेखना धारण कर स्वर्ग में प्रतीन्द्र होने का वर्णन है । ११० पर्व में राजा का चन्द्ररश्र की दो पुत्रियों क्रमणः लवण और अंकुश का वरण कर लेती हैं । १११वें पर्व में मामण्डल की वज्रपात से मृत्यु हो जाती है । ११२ पर्व में हनुमान् का विराग, दीक्षा धारण करना । ११४वें पर्व में सोधर्मेन्द्र द्वारा यह बन्धनों में स्नेह बन का टूटना सरल नहीं, वर्णित है । मुख से राम की मृत्यु का झूठा समाचार सुनकर लक्ष्मण का ११६ वें पर्व में लक्ष्मण के निष्प्राण शरीर को ११७ वें पर्व में सुग्रीव, विभीषण आदि राम को समझाते हैं । ११८ पर्व में कृतान्तवक्र सेनापति के जीव देव के समझाने पर राम लक्ष्मण का दाह संस्कार कर देते हैं । ११९वें पर्व में राम अनज लवण को राज्य दे दीक्षा ले लेते हैं । १२० में पर्व में राम का चर्या के लिए नगरी में आने वया नगरी में क्षोभ हो
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११३वें पर्व में हनुमान् का कहा जाना कि सब ११४वें पर्व में देवों के
निधन हो जाता है। राम गोदी में लिये फिरते
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