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८: पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति लग जाती है। ६३३ पर्व में शक्तिनिहत लक्ष्मण को देख राम विलाप करते है। ६४ पर्व में एक अपरिचित मनुष्य विशल्या द्वारा लक्ष्मण की शक्ति दूर होने का उपाय बतलाता है। ६५३ पर्व में विशल्या लक्ष्मण की शक्ति दूर करती है तथा लक्ष्मण का विशल्या के साथ विवाह होता है । ६६ पर्य में रावण का दूत राम के दरबार में आकर रावण के पक्ष का समर्थन करता है। यहाँ दूत को किसी फल की प्राप्ति नहीं होती है । ६७ पर्व में रावण बहरूपिणी विधा सिद्ध करता है। ६८में पर्व में दोनों सेनायें आष्टालिक पर्व मनाती है। ६९वें पर्व में रावण शान्तिजिनालय में विद्या सिद्ध करने के लिए बासनारूत होता है। ७० पर्व में अंगद आदि योद्धा विघ्न उपस्थित कर रावण को विचलित करने का यत्न करते हैं । ७१३ पर्व में रावण को विद्या सिच हो जाती है । ७२खें पर्व में सीता का मन विचलित करने का रावण अनेक उपाय करता है। अन्त में सीता को दीनदशा देखकर रावण दुःखी होता है किन्तु वह युद्ध से विमुख नहीं होता है। ७३३ पर्व में रायण के मंत्री तथा पत्नी मन्दोदरी जसे समझाते हैं। ७४बें पर्व में रावण और लक्ष्मण का भीषण युद्ध होता है । ७५वें पर्व में रावण लक्ष्मण पर चकरन चलाता है। पर वह तीन प्रदक्षिणायें देकर लक्ष्मण के हाथ में आ जाता है। ७६न पर्व में लक्ष्मण चक्ररत्न चलाकर रावण का अन्त कर देते हैं। ७७वे पर्व में रावण का बना पायव प्राधिकरण विकाते हैं। ७८वें पर्व मे इन्द्रजित्, मेघवाहन, कुम्भकरण तथा भय आदि राजामण निर्ग्रन्थ दोक्षा धारण करते है । मन्दोदरी तथा चन्द्रनखा आदि रानिया आपिका के व्रत ग्रहण करती है । ७९वें पर्व में राम और सीता का मिलन होता है। ८० पर्व में राम लंका में छः वर्ष तक रहते हैं। ८१वें पर्व में नारद लंका में पहुँचकर राम के सापने कौशल्पा, सुमित्रा आदि के दुःख का वर्णन करते हैं। ८२ पर्व में राम, लक्ष्मण तथा सोता इष्ट मित्रों के साथ अयोग्या आते है। ८३वें पर्व में भरत के निर्वेद का तथा त्रिलोक मण्डन हाथी का वर्णन है । ८४वें पर्व में विलोकमण्डन हामी व्रत धारण करता है। ८५वे पर्व में देशभूषण तथा कुलभूषण केवली हाथी और भरत के भवान्तरों का वर्णन करते है। ८६वें पर्व में भरत दोक्षा धारण कर लेते हैं। केकया ३०० स्त्रियों के साथ आर्यिका जान जातो है। ८७वें पर्व में विलोकमण्हन हाथी समाधि धारण कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव होता है | भरत का निर्वाण होता है । ८८वें पर्व में राम-लक्ष्मण का राज्याभिषेक होता है। राम-लक्ष्मण अन्य राजाओं को देशों का विभाग करते है । ८९वें पर्व में शत्रुध्न मथुरा का राज्य माँगकर मधु से युद्ध करते हैं । घायल मधु मुनि दीक्षा धारण कर लेते हैं। ९०वें पर्व में घमरेन्द्र कुपित होकर मधुरा में रोग फैलाता है। शत्रुघ्न अयोध्या वापिस आ जाते हैं। ९१३ पर्व में
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