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पद्मपरित का परिचय : तथा अतिवीर्य दीक्षा ग्रहण करता है। ३८वे पर्व में लक्ष्मण का जितपद्मा के साथ विवाह होता है। ३९वें पर्व में गम-लक्ष्मण देवभूषण कुलभूषण मुाने का उपसर्ग निवारण करते है। ४० पर्व में वंशस्थलपुर के राजा सुरप्रभ राम का अभिवादन करने हैं। राम दण्डक बन को प्रस्थान करते है । ४१३ पर्व में राम लक्ष्मण तथा सीता का जटायु से मिलन होता है । ४२वें पर्व में पात्र दान के प्रभाव से राम-लक्ष्मण रत्न तथा स्वर्णादि से युक्त होकर इच्छानुसार दण्डक बन में घूमते हैं । ४३३ पर्व में लक्ष्मण द्वारा शम्बूक वध तथा उन्हें सूर्यहास खड्ग की प्राप्ति होती है। ४४३ पर्व में राम-लक्ष्मण का खरदूषण के साथ गुद्ध होता है । खरदूषण की सहायता के लिए गयण आप्ता है। छल से वह सीता को हर ले जाता है । ४५३ पर्व में राम सीता के वियोग में दुःखी होते हैं उनको विराषित से मैत्री होती है । ४६ पर्व में रावण सीता के साथ लंका पहुँचता है । मंदोदरी बहुत रामझाती है लेकिन वह नहीं मानता। ४७वे पर्व में राम कृषिम सुग्रीव ( साहसगति ) को मारते हैं तथा यथार्थ सुग्रीव की तरह कन्याओं से विवाह करते हैं। ४८३ पर्व में रत्नजटी बतलाता है कि सीता को रावण हर ले गया है। ४९वें पर्व में लक्ष्मण कोदिशिला उठाते है। वानर लक्ष्मण की पाक्ति का विश्वास कर युद्ध करने के लिए तैयार होते है । ४९ पर्व में हनुमान सीता के पास राम का मंदेश भेजने के लिए लंका जाते हैं। ५०३ पर्व में हनुमान बलपूर्वक राजा महेन्द्र को परास्त करते है। ५१वे पर्व में राम को गन्धर्व कम्यामों की प्राप्ति होती है । ५२वें पर्व में हनुमान लंका के मायामयी कोट को ध्वस्त कर लंका सुन्दरी के साथ विवाह करते हैं। ५३वे पर्व में हनुमान लंका में जाकर विभीषण से मिलते है। बाद में सीता को गम का सन्देश सुनाते हैं। अनन्तर बन्धनब होने पर वे रावण के समक्ष जाकर बन्धन तोड़ लंका को नष्ट-भ्रष्ट कर वापिस आ जाते हैं । ५४थे पर्व में हनुमान् राम को सीता की दयनीय स्थिति का निरूपण करते हैं। विद्याधर राम को माप ले लका की ओर प्रस्थान करते हैं । ५५वे पर्व में विभीषण रायण से तिरस्कृत · होकर राम से आ मिलता है। ५६वे पर्व में राम की सेना का वर्णन है। ५७वें पर्व में लंका निवासिनी सेना की तैयारी तथा उसका लंका से बाहर निकलने का वर्णन है। ५८वें पर्व में नल और नील के द्वारा हस्त और प्रशस्त मारे जाते है। ५९ पर्व में हस्त-प्रहस्त और नल नील के पूर्व भषों का वर्णन है। ६०३ पर्व में अनेक राक्षस मारे जाते हैं। राम-लक्ष्मण को दिल्यास्त्र तथा सिंहवाहिनी
और गरुडवाहिनी विद्यायें प्राप्त होती है। ६१वें पर्व में सुग्रीव तथा भामण्डल नागपाश से बाँधे जाकर राम लक्ष्मण के प्रभाव से बन्धनमुक्त होते हैं। ६२वें पर्व में वानर और राक्षसर्वशी योद्धाओं का युट होता है तथा लक्ष्मण को शक्ति