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१० : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
जाने के कारण लौट जाने तथा १२१ वें पर्व में वन में राम को बहार लाभ होने का वर्णन है । १२२ पर्व में सीता का जीव राम को तपस्या से गाने का प्रयत्न करता है । ९२३वें पर्व में मीता का जीव नरक में जाकर लक्ष्मण तथा रावण को संबोधता है। राम का निर्वाण होता है । अन्त में रविषेण ने अपनी प्रशस्ति लिखी है ।
कथानक रूढ़ियाँ
पद्मचरित में कथानक रूढ़ियों को ग्रहण किया गया है। ये कथानक रूड़ियाँ रविषेण को पूर्ववर्ती रचनाओं ( लोकप्रचलित रामायण, पउमचरिय या अन्य आचार्यकृत ग्रन्थों, जिनका उन्होंने नाम निर्देश किया है ) तथा लोकमानस से प्राप्त हुई होंगी। इनमें रूप परिवर्तन या यथेच्छानुसार रूप बनाना । जैसेचपलखेण नाम का विद्याघर सीता का हरण कर स्थनूपुर ले गया था ), २१ देवी शक्तियों का सहयोग ( विभिन्न देवीय शस्त्रास्त्रों आदि का सहयोग), अदभुतकृश्य ( रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाया जाना, माया निर्मित अनेक शीश, २३ अद्भुत पदार्थ (पुष्पक विमान २४ आदि), प्रेमी के विरह में प्राण स्माग करने के दृढ़ संकल्प के समय प्रेमिका को प्रेमी की प्राप्ति २५ आदि कथानक रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है ।
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राम कथा का एक दूसरा रूप
जैन राम कथा का एक दूसरा रूप हमें गुणभद्र (८९७ ई० ) कुस उत्तर-पुराण में मिलता है | गुणभद्र को राम कथा का संक्षिप्त कथानक इस प्रकार हैराजा दशरथ वाराणसी के राजा थे। राम की माता का नाम सुत्राला और लक्ष्मण की माता का नाम केकयी था। भरत, शत्रुघ्न अन्य किसी रानी से उत्पन्न हुए, जिसका नाम नहीं दिया है। दशानन विनमि विद्याधर वंश के पुलस्त्य का पुत्र है। किसी दिन वह अमितवंग की पुत्री मणिमती को तपस्या करते देखता है और उसपर आसक्त होकर उसको साधना में विघ्न डालने का प्रयत्न करता है, मणिमती निदान करती है कि मैं दशानन की पुत्री होकर उसे माऊँगी | मृत्यु के पश्चात् वह रावण को रानी मन्दोदरी के गर्भ में आती हूं । भष्यवक्ताओं ने यह कहा कि यह कन्या आपका नाश करेगी । अतः रावण उसे मंजूषा में रखवाकर मरीचि के द्वारा जमीन में गड़वा देता है । हल की नोक से उलझ जाने के कारण वह मंजूषा दिखलाई देती है और लोगों द्वारा जनक के पास ले जाई जाती है । जनक मंजूषा को खोलकर एक कन्या को देखते
२१. पद्म० २८/६०-९९ ।
२३. वही, ७५/२३, २४, २५ ॥ २५. वही, ३६।३५-४९ ।
२२. पद्म० ९/१३६, १३७ । २४. वही, ४४८४