________________
कला : १७९
वृहदाकार रहता था और उसमें मजबूत किवाड़ लगाए जाते थे । आगारों का ही एक प्रकार अट्टालिका और तल्प है। अट्टालिका वस्तुतः लगाए प्रकोष्ठ वाले भवन को कहा जाता है । तल्प केवल शिखर प्रदेश में स्थित कमरे को कहा जाता है । ११० पद्मचरित में राजगृह नगर के आगारों के विषय में कहा गया है। कि वे आगार छूने से पुले सफेद महलों की पंक्ति से लसें जान पढ़ते थे मानो टोकियों से गढ़ चन्द्रकान्त मणियों से ही बनाए गए हों । ३११ एक स्थान पर सवागार का भी उल्लेख हुआ है ।
२३२
・급력
. ३३४
1
आलय 2 - भालय का सामान्य अर्थ होता है निवास। जिसका जहाँ निवास हो यह उसका आलय है । जैसे विद्यालयः - विश्वायाः (विद्या का ) आलय (निवास) - विद्यालयः । विद्या का अहो निवास हो वह विद्यालय कहलाता है । पद्मचरित के रावणालय ( रावण का आलय), शत्रुन्दमालये १५ (शत्रुदम का आलय) बादि राध्य इस अनि के प्रांत है। कार का था कि जब अङ्गद के पदाति उसकी मणिमय भूमि में पहुँचे तब मगरमच्छों से युक्त सरोवर समझकर भय को प्राप्त हुए पश्चात् उस भूमि के रूप की निश्च लसा देन जब उन्हें निश्चय हो गया कि यह तो मणिमय फर्श है तब कहीं आश्चर्यचकित होते हुए आगे बढ़े । ३३६ सुमेरु की गुहा के आकार बड़े-बड़े रत्नों से निर्मित तथा मणिमय तोरणों से देदीप्यमान अब भवन के विशाल द्वार पर पहुँचे तो वहाँ अंजनगिरि के समान, चिकने गण्डस्थल वाले बड़े-बड़े दातों वाले तथा अत्यन्त देदीप्यमान इन्द्रनीलमणि निर्मित हाथियों को देखा। हाथियों के मस्तक पर सिंह के बच्चों ने पैर जमा रखे थे। उन बच्चों की पूंछ ऊपर को उठी हुई घो। उनके मुख दाढ़ों से अत्यन्त भयंकर थे, नेत्रों से भय टपक रहा था तथा उनकी सटाएँ मनोहर थीं। इन सबको सचमुच के हाथी और सिंह
३३०. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री : नादिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २०५ । ३३१. सुषारससमासङ्गपारागारपङ्क्तिभिः ।
कल्पित शितांशुशिलाभिरिव कल्पितम् ॥ पप० २३७ ।
३३३. पद्म० ८०१६३ |
३३५. वही, ३८।८२ ।
३३२. पद्म० ३।१७२
३३४ बही, ७१।१६ । ३३६. रावणालयमाहाक्ष्मामणिकुट्टिमसङ्गताः ।
ग्रहावर सरसोऽभिशास्त्रासमीयुः पदातयः ॥ पद्म० ७१४१६ । रूपनिश्चलतां दृष्ट्वा नितमणिकुट्टिमाः ।
पुनः प्रसरणं चक्रुर्भटाः विस्मयपूरिताः ॥ पद्म० ७१ । १७ ।