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१७८ : पचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
मुख कहलाता था, जिसको दूसरे शब्दों में हार भी कहते है । हार के ऊपर तोरण होता था, जो मत्स्य या मकर की आकृति का होता था। मथुरा की कला में मकराति तोरण अनेक उपलब्ध है । तोरण भवन का सबसे पहला फाटक होता था। यह कभी-कभी अस्थायी भी होता था। यहीं पर अतिथियों को अगवानी की जाती थी । ३२२ पवाचरित में कूद के समान सफेद, महानीलमणि के समान नील, पनरागमणि के समान लाल, पुष्पराज मणियों के समान प्रभास्वर और गमणि के समान गहरे मील वर्णवाले गृहों का वर्णन भाया है । १३ गृहों में सुरंगें होती थी। घोर लोग सुरंग द्वारा दूसरों के यहाँ जाते थे । ३२४ मामान्यतः यापत्तिकाल में घर से बाहर निकलने के लिए इस प्रकार की सुरंगें बनाई नाती होंगी। जिस उद्देश्य के लिए गृह निर्मित होता था उस उद्देश्य के आधार पर उसका नाम पड़ जाता था। जैसे-सूतिगृह । २५ रावण का गृह इम्भवन के समान था। उसका स्वर्णमय कोट था। तथा उसमें अनेक स्तम्भ लगे हुए
थे । २६
वेश्मर२७ भवनों का एक प्रकार वेषम है । साधारण साफ, स्वच्छ और मध्य भवन को वेश्म कहा जाता है। वेश्म में उपयोग की सभी वस्तुयें वर्तमान रहती है। वेश्म मोष्म ऋतु में सुखप्रद होता था। ऐसा प्रतीत होता है कि यह शीतल बनाया जाता था। वायु-प्रवेश के लिए दोनों और गवाया रहते थे और छत पर्याप्त ऊंची होती थी । वेश्म दुमंजिले और तिमजिले भी होते थे । १२८
आगार ३२९..-आगार भी घर का एक प्रकार है। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार भागार ऐसे भवन को कहा जाता था जिसमें आंगन और छोटे उपवन का रहना आवश्यक पा । आगार का जैसा वर्णन उपलब्ध होता है, उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा मकता है कि वह प्राकारमण्डित होता था। आगार को सामान्य व्यक्ति भी पसन्द करने थे। यह इंटों और मिट्टी दोनों से बनाया जाता था । इष्टिकानिर्मित भागार पक्के होते पे और मृतिका से बनाए गए मागार कच्चे होते थे । आगार में वातायन और गवाक्ष भी रहते थे। पुष्प तथा लता भी आगार के सामने वाले आंगन में शोभित राहती थीं । आगार का द्वार
३२२.० नामचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, १०३०४ । ३२३, पम० ८५११, ५१२
३२४. पत्र० ५।१०३, १०४ । ३२५. वही, ७।२१३ ।
३२६. वही, ५३।२६४-२६६ । ३२७. वही, ५३।२०३ । ३२८. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ३०५ । ३२९. पप. ७।१७७, १२१३७ ।