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१७४ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
बनाकर जीविका किंवा करता था द्वार का तीसरा अङ्ग कलिका अथवा अर्गला है जो दोनों दरवाजों को बन्द करने में सहायक होती है। पद्मचरित से इसका भी सद्भाव सूचित होता है ।
स्तम्भ- भवन का दूसरा प्रमुख अङ्ग स्तम्भ है | भारतीय स्थापत्य में मन्दिर, गोपुर और स्तम्भ ये ही सर्वोपरि सुन्दरतम कृतियां हैं। पप्रचरिस में अनेक स्थान पर२७७ भवन तथा मन्दिरों में खम्भे लगाने का उल्लेख किया गया है। सामान्य स्तम्भ के अतिरिक्त हेमस्तम्भ२७६ तथा रत्नस्तम्भ भी उस समय लगाये जाते थे ।२७२
आस्थान-मण्डप- आस्थानमण्डप शब्द का प्रयोग पद्मचरित में कई बार किया गया है । २८० इसे सभा, सभामण्डप, भास्थान, आस्थानो और आस्थायिका नलचम्पू नवीं पाती) भी कहा जाता था । २८५ राजकूल की दूसरी कक्षा में इसकी स्थिति होती थी । इसे ही मुगल-महलों में 'दरि आम' कहा गया है । इसके सामने अजिर या खुला मैदान रहता था। अजिर से कुछ सीढ़ियां चढ़कर भास्थान-मण्डप में पहुंच जाता था। दिल्ली के किले में दारे आपम के सामने को खुला माग है वहीं प्राचीन शब्दों में अजिर है। सन्नाट सार्वजनिक रोति से दरबार में मंत्रणा करते या मिलते-जुलत वह सब इसी बाह्य मण्डप में होता था।८२ पधचरित के ७३वें पर्व में रावण को ऐसे ही आस्थानमण्डप में बैठा दिखलाया गया है । २८३
अन्य मण्डप-पचरित में अन्य प्रकार के मण्डपों का भी उल्लेख मिलता है। जैसे आहार-मण्डप२४४, सन्नाह-मण्डप२८", लता-मण्डप२०५, कुम्दमण्डप आदि । भोजन करने के विशेष स्थान को आहार-मण्डप कहते थे । २७६. पद्म० ९१।२४। २७७. वही, ५३१२६४, ८०५८, ६५, ३२२५, ६७।२६, ४०१२८ । २७८. वही, ८०८, ६५, ६७४२६, २८1८९ । २५९. वहीं, ७।३३९ । २८०. वही, ७३।१, ८६०,५३।२२१, ३११, ७१।३ । २८१. वासुदेवशरण अग्रवाल : कादम्बरी एक सांस्कृतिक अध्ययन, १० २०५ । २८२, वासुदेवशरण अग्रवाल : हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० २०५ । २८३. ततो दशाननोऽन्यत्र दिने परमभासुरः ।
आस्थानमण्डपे तस्थावुदिते दिवसाधिप । पद्म० ७३।१। २८४, पा. ८४०१४ ।
२८५. पप १२।१८१ । २८६. बही, ४२।८५ ।
२८७. वहो, २८८७