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१७० : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
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अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं । इनको शक्त्यनुसार मणि आदि से आच्छादित किया जाता था । आज भी प्राचीन अथवा मध्यकालीन महानगरियों (राज. पानियों) में महाद्वारों की भव्य रचना दिखाई पड़ती है। पाटलिपुत्र के वर्णन में मेगस्थनीज ने उस प्राचीन महानगरी के ६४ महाद्वारों एवं प्राकार-भित्ति पर पर प्रतिष्ठित ५७० अट्टालकों का उल्लेख किया है । २१८ गोपुरों का पदमचरित में बहुवचन से उल्लेख होने के कारण इनमें अनेक की संख्या में बनाए जाने की पुष्टि होती है । पद्मचरित के ६३ वें अध्याय में एक स्थान पर कपड़े के डेरे बनाते तथा मण्डप बनाकर सात गोपुरों पर योद्धा खड़े कर विश्राम करते हए सैनिकों की सुरक्षा करने का उल्लेख आया है ।२३१ कपड़े के अस्थायी मण्डपों में जब इतने गोपुर बनाए जाते थे तब स्थायो नगरों में तो स्वाभाविकतया अधिक बनाए जाते होंगे।
भवन-निवेश जन्म एवं विकास पद्मवरित के अनुसार इस भरत क्षेत्र में पहले भोग, भूमि थी ।२४° उस समय लोग सर्वलक्षणों से पूर्ण थे ।२४१ यहाँ स्त्री-पुरुष का जोड़ा साथ ही साथ उत्पन्न होता था, तीन पल्य को उनकी आयु होती पी और प्रेमबन्धनबद्ध रहते हुए साथ ही साथ उसकी मृत्यु होती थी ।२१२ वृक्ष सब ऋतुओं के फल और फूलों से सुशोभित रहते थे तथा गाय, भैंस, भेड़ आदि पशु स्वतन्त्रतापूर्वक सुख से निवास करते थे । २४३ वहां न तो अधिक शीत पड़ती थी, न अधिक गर्मी होती थी, न तीन वायु चलती थी । २४४ वहां बड़ेबड़े बाग-बगीचे और विस्तृत भूभागसहित दूर तक फैलने वाली सुन्दर गन्ध तथा इनके सिवा और भी अनेक प्रकार की सामग्री कल्पवृक्षों से प्राप्त होती थी । २४५ इस प्रकार वहां के दम्पती देव-दम्पती के समान रात-दिन क्रीड़ा करते रहते थे । २४ तृतीय काल का अन्त होने के कारण अब कम से कल्पवृश्न नष्ट होने लगे तब चौदह कुलकर उत्पन्न हुए । २१७ ये सन प्रकार की व्यवस्थाओं का
२३६. पद्मः ५।१७५, १६॥१६, ६।१३२, १३।४ । २३७. वही, ६।१३२। २३८. विजेन्द्रनाथ शुक्ल : भारतीय स्थापत्य, पृ० १०५ । २३९. पद्म ६३१२८-३४ ।
२४०. पद्म० ३।४९ । २४१. वही, ३१५० ।
२४२. वही, ३५१ । २४३. नही, ३३५४ ।
२४४. वही, ३।५९। २४५. वही, ३।६१.६२।
२४६. यही, ३०६३। २४७. वही, ३।६४ ।