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१५२ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
९- शरीर की समस्त चेष्टायें संगीतशास्त्र के अनुरूप होना ।
१०-दर्शकों के नेत्रों को रूप से, कानों को मधुर स्वर से और मन को रूप तथा स्वर दोनों से मजबूत बांधने की चेष्टा करना 1५०
११-साथ में नृत्य करने वाले के स्वर में स्वर मिलाकर गाना।"
नृत्य की मुद्रायें-पद्यरित में नृत्य की निम्नलिखित मुद्राओं के दर्शन होते है।
१-मन्द-मन्द मुस्कान के साथ देखना ५२ २--मौहों का मलाना १२ ३-सुन्दर स्तनों को कपाना ।९४ ४-धीमी-धीमी सुन्दर चाल से चलना । १५ ५स्थूल नितम्ब का मटकाना । ६-भुजाओं का चलाना 1१५ ७-उत्तम लीला के साथ हस्तरूपी पल्लवों का गिराना ।
८-.-शीघ्रता से स्पर्श कर जिसमें पृथ्वीतल छोड़ दिया जाता है ऐसे पैर रखना 1१९
९--शीघ्रता से नृत्य की अनेक मुद्राओं का बदलना 100 १०-केशपाश का चलाना । १०५ ११-कटिं को अस्थि हिलाना । १०२ १२-नाभि भादि शरीर के अवयवों का दिखलाना ।१०३
नृत्य के भेद-अङ्गहाराश्रय, अभिनयात्रय और व्यायामिक ये नृत्य के तीन भेद हैं । इनके अवान्तर भेद भी होते है ।1०४ इन सभी नृत्यों के करते समय पैरों में नूपुर १०५ पहने जाते है जिनकी झनकार आकर्षक होती है 1
८९. एम. ३९।६० । ९१. वही, ३७।१०८ । ९३. वही, ३७।१०४ । ९५. वही, ३७।१०५ । ९७. वही, ३७१०५। ९९. वहीं, ३७।१०६ । १०१. वही, ३७१०६ । १०३. वही, ३७११०७ । १०५. वही, ३८।१३ ।
९., एम. ३७।११० ९२. वही, ३७६१०४ । ९४, वही, ३७१०४। ९६. वही, ३७११०५ । ९८. वही, ३७।१०५ । १००. बहो, ३७।१०६ । १०२. वहीं, ३७.१०७ । १०४. नहीं, २४।६।