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कला : १५३
सादर पयवरित में वीणा'०५, पणिघ१००, वेणु०८, मृदंग१०५, वंश१० (बांसुरी), मुरज", मर१२ (साँझ), पानझ११३ (नगाड़ा), शब१११, भेरी११५, सूर्य'", काहल११०, दुन्दुभि १८, सल्लरी ११५ (शालर), पटह१२०, तंत्री१२ (बीणा), हक्का१२२ आदि वाद्यों का प्रयोग मिलता है।
बाघों के चार भेद-पद्मचरित में वाद्यों के चार प्रकार कहे गये है : १. तत-तन्त्री अर्थात् वीणा से उत्पन्न होनेवाले 1१२३ २. अवनद्ध-मृदङ्ग से उत्पन्न होनेवाले ।
३. सुषिर-बाँसुरी से उत्पन्न होनेवाले १२५ अर्थात् छिद्रों में फूक मारने से ध्वनित होनेवाले १२ वाद्यों का नाम सुषिर वाद है ।
४. घनताल से उत्पन्न होने बाले । २७
के वासुदेव शास्त्री के अनुसार तत घाद्य अनेक प्रकार की दोणायें अर्याद एकतन्त्री, नकुल, प्रिन्त्रिका, चित्रा, विपञ्ची, मत्तकोकिला, आलापिगी, किन्नरी, पिनाकी और माधुनिक तन्त्रीवाद्य अर्थात् जन्त्र, चतुस्तन्त्री, विचित्रवीणा, रुद्रवीणा, सितार, सरोद, स्वरवत, बाल सरस्वती, स्वरमण्डली, सारङ्गी, दिलरुवा, वायलिन, तानपूरा, मोरसिंह आदि हैं।
सुषिर वाहन में बंशी आदि विविध प्रकार की बांसुरिया, शहनाई, सुन्दरी, नांगस्वर, मुखवीणा या छोटा नागस्वर, काहल, श्रीचिह्न, (तिरुच्चिन्न), बल, शृङ्ग, कलारिनट, ट्रम्पेट, सासफोन आदि है। १०६. पन० ३९।४७, ३६, ९२, ४८१२, १२।१६ । १०७. वही, १७१२७५ ।
१०८. पयः १७.२७५ । १०९. पही, ३६.९२ ।
११०. वही, ४०/३० । १११. यही, ४०।३० ।
११२. वहीं, ४०१०। ११३. यहो, ४०।३० ।
११४. वही, ४०1३० । ११५, वही, ४०।३०।
११६. वहीं, ६८।९। ११७. वही, ६८।९।
११८. वही, ८८।२७ ! ११९. वहीं, ८८।२७ ।
१२०. वही, ३॥१६२ । १२१. वही, २४.२० ।
१२२. वहीं, ८०५५ । १२३. वही, २४॥२० ।
१२४. वहीं, २४१२० । १२५. वही, २४।२० । १२६. के. वासुदेव शास्त्री : संगीतशास्त्र, प० २५३ ! १२७, पद्मा २४२२० ।