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कला : १५१
समूह माम है, जिसमें श्रुतियां व्यवस्थित रूप में विद्यमान हों और जो मूछना, तान, वर्णन, क्रम, अलंकार आदि का आश्रय हो ।
मुत्य-कला पद्मचरित में कई स्थानों पर नृत्य का उल्लेख तथा वर्णन किया गया है। साधारण लोगों से लेकर राजपरिवार" (भूमगोधरी और विधानरों तक के यहाँ) तक सभी स्थानों पर नृत्यकला सीखी जाती थी । राजा सहस्रार के यहाँ छन्नीस हजार नृत्यकार नृत्य करते थे । पशुओं को भी नृत्य की शिक्षा दी जाती थी । राजा सहस्रार के पुत्र-जम्मोत्सव पर ममुष्यों की तो बात ही दूर रही, हाथियों ने भी अपनी चंचल सूड उठाकर गर्जना करते हुए नृत्य किया था। सुन्दर नृत्य के लिए आवश्यक बातें
१ -सुन्दर नृत्यों के लक्षण का ज्ञान ।' २-मनोहर वेषभूषा (हार, माल्यादि) से अलंकृत होना । २ ३-परम लीला से युक्त होना । ४-पष्ट रूप से अभिनय खिलाना ।४ ५-शरीर के अंग प्रत्यङ्ग (बाहु आदि) सुन्दर होना । ५ ६-हाव-भाव आदि के दिखला में निपुण होता।" ७-घरणों का विन्यास शब्दरहित होना । ८७
८- नृत्य करते समय एक जांच चलना। ७३. समूहयाचिनी मामी स्वरथुस्मादिसंयुतौ ।
यथा कुटुम्बिनः सर्वे एकीभूय वसन्ति हि ॥ सर्वलोफेषु स पामो पत्र नित्यं व्यवस्थितः । षड्जमध्यम संज्ञौ तु द्वौ ग्रामौ विश्रुतो किल ।।
-मत : भरतकोश, पृ० १८९ (मरत का संगीतसिद्धान्त, पृ० ५) ७४. प. ३८।१३०, ३९॥५३, ५६, ४०१२३, ३७९५, ८८२८,
३७।१०८, ७३४८, ७१६, १०३।६६, २।२२, २४०६, ७१४८,
३७।१०९। ७५. पप०७१।८।
७६. पन. २४।६ । ७७. वहीं, १०३।६६ ।
७८. वही, १०३१६६ । ७९. वही, ७१२५ ।
८०. बहो, ७।१६ । ८१. वही, ३९।५३ ।
८२. वहीं, ३९५३ । ४३. वहीं, ३९॥५४॥
८४, वही, ३९१५४ । ८५. वहीं, ३९।५४ ।
८६. वहीं, ३९१५४ । ८७. वही, ३९।५५ ।
८८. वहो, ३९।५५ ।