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________________ १५० : पद्मपरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति साथ-साथ प्रयोग होता है। ताल पञ्चत्पुट है । कलायें सोलह हैं । पचिये दृश्य में ध्रुवा गान में इसका प्रयोग होता था। ____ नन्वनी-(नम्दयन्ती) इस जाति में गांधार ग्रहस्थर है। मतान्तर में पंचम भी ग्रहस्वर है । मन्द्र ऋषभ बहुल स्वर है । ताल चञ्चरपुट है । कलायें बत्तीस है । नाटाइले दृश्य पान न यो हो पा ।" ____ कौशिकी-इस जाति में निषाद और धंवत अंश हों तो पंचम न्यास रहना चाहिए । इस विषय में मतान्तर भी है कि नि एवं ग अंश होने पर नि ग और. पइन तीनों को व्यासस्वर रहना चाहिए । ऋषभ अल्पस्वर है। निषाद और पंचम बहुल स्वर है। सारे अंश स्वरों में अर्थात् स ग म ए ध नि में दो-दो स्वरों का प्रयोग साथ-साथ होता है। ताल, कला और गीति पाइजी के समान है । इसका प्रयोग पाँच दृश्य में और भुषागान में होता था। संगीत की अभिव्यक्ति-संगीत की अभिव्यक्ति कंठ, शिर और उरःस्थल से होती है । सङ्गीत के चार पद-स्थायी, संचारों, आरोही और अवरोही इन चार प्रकार के वर्गों के सहित होने के कारण चार प्रकार के पद कहे गये हैं। संगीत इन चार पदों में स्थित होता है ।" . स्थायी पद के अलङ्कार-प्रसन्नादि, प्रसन्नान्त, मध्यप्रसाद और प्रसन्नाअवसान ये चार स्थायी पद के अलंकार है । संचारी पद के अलङ्कार--निवृत्त, प्रस्थित, बिन्दु, प्रेस्रोलित, तार, भन्न और प्रसन्न मे छ: संचारो पद के अलंकार है। __ आरोही पद के अलङ्कार आरोही पद का प्रसम्नादि नामक एक ही अलंकार है। अवरोही पद के अलङ्कार-अवरोही पद के प्रसन्नान्त और कुहर दो अलंकार है। ग्राम र..पाम शब्द समूहमाची है । जिस प्रकार कुटुम्ब में लोग मिल-जुलकर मर्यादा की रक्षा करते हुए इकठे रहते है उसी प्रकार संवादी स्वरों का वह ६४. के. वासुदेवशास्त्री : संगीतशास्त्र, पु० ५५ ५ । ६५. वही, पृ० ५४ । १६. प० २४१७ । ६७. पप० २४।१०। ६८. बड़ी, २४॥१६॥ ६९. वहीं, २४।१७। ७०. वहो, २४।१८। ७१. वही, २४।१८। ७२. वही, ३७।१०८।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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