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१३६ पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
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प्राचीन भारतीय मनोरंजन में गणिकाओं को प्रमुख स्थान मिला था । गणिकायें राज्य की सम्पत्ति समझी जाती थीं। लक्ष्मण ने सिंहोदर और वज्रकर्ण की जब मित्रता करा दी तब सिंहोदर ने वज्रकर्ण को अपने राज्य का आवा भाग, चतुरंग रोना तथा धन आदि के साथ आधी गणिकायें भी बच्चोदर के लिए दीं । मुच्छकटिक में गणिका वसन्तसेना की समृद्धि का जो वर्णन किया गया है वह समाज में गणिकाओं के सम्मान का संकेत करता है । सम्भवतः उस काल में वेश्याओं के दो वर्ग थे : १. गणिकार्ये नृत्य गीतादि के द्वारा जोविकोपार्जन करती थीं तथा २. वेण्यायें रूप यौवन के द्वारा । यणिकाओं से समाज के प्रतिष्ठित लोगों का भी सम्बन्ध रहता था । गणिकायें अपनी पेशा छोड़कर कुलवधुयें भी बन सकती थीं और ब्राह्मण तक उनसे विवाह कर सकते थे। मृच्छकटिक में एक नहीं दो-दो ब्राह्मणों का विवाह गणिकामों से कराया गया है 1 चारुदत्त का विवाह वसन्तसेना से होता है, शक्लिक मदनिका को अपनी वधू बनाता है । विलासिनी (श्यायें ) मी उस समय अच्छा मनोरंजन करती थीं। पद्मचरित में एक स्थान पर बिट पुरुषों से सेवित विलासिनियों को देव -नर्तकियों के समान कहा गया है । १७२
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विदूषक १७० और नट १७४ भी मनोरंजन में अत्यधिक योग देते थे । संस्कृत का शायद ही कोई नाटक हो जिसमें विदूषक न हो । शारीरिक अङ्गों में पद्मचरित में इसके लटपटे कामों को विशेष चर्चा की गई है । इस प्रकार के शारीरिक अवयवों तथा चेष्टाओं से हास्य-विनोद करने वाला व्यक्ति ही विदूषक की भूमिका अच्छी तरह निभा सकता था ।
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नृत्य करना, ताल बजाना, सिंहनाद करना ( उदा नदितं) तथा गीत गाना आदि मनोरंजन के अच्छे साधन थे। इन सबका उल्लेख कला वाले अध्याय में किया गया है। दचों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाए जाते थे । बाल्यावस्था की स्मृति के द्योतक होने के कारण ये किसी-किसी की अमूल्य धरोहर हो जाते थे ।" शुद्र नाम के मनुष्य के पास एक मयूर-पत्र का खिलौना था। एक दिन वह खिलौना हवा में उड़ गया और राजा के पुत्र को मिल गया । उस कृत्रिम मयूर के निमित्त शोक करता हुआ वह अपने मित्र से बोला कि मित्र 1 यदि तुम मुझे जौवित देखना चाहते हो तो मेरा
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१७१. पद्म० ३३।३०७-३०९ । १७३. वही, ६।११७ । १७५. वही, ६।११७, १२८ । १७७. वही, ७।३४८ ।
१७२. पद्म० ४० २३ | १०४. वही, ९१।३१ । १७६. वहीं, ७३४८ । १७८. वहीं, ७।३४९ ।