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मनोरंजन : ११
की जाय । सब लोग बहुत भारी भादर के साथ महेन्द्रोदय उद्यान में जाकर जिन-मन्दिरों की शोभा करें। तोरण, पताका, लम्बूष, घंटा, गोले, आईचान, चंदोबा, अपना मनोहर वर तथा अत्यन्त सुन्दर उपकरणो के द्वारा लोग सम्पूर्ण पृथ्वी पर जिन-पूजा करें। निर्वाण-क्षेत्रों के मन्दिर विशेष रूप से विभूषित किये जायें तथा सर्व सम्पत्ति से सहित महाशानन्द बहुत भारी हर्ष के कारण प्रवृत्त किये जाय ।१२४ ।।
राम की आज्ञानुसार विशाल मन्दिरों के द्वारों पर उत्तम हार आदि से अलंकृत पूर्णकलश स्थापित किये गये । मन्दिरों की स्वर्णमयी लम्बी चौड़ी दीवालों पर मणिमय चित्रों से पित को आकर्षित करने वाले उत्तमोत्तम चित्रपट फैलाये गये । खम्भों के ऊपर अत्यन्त निर्मल एवं शुद्ध मणियों के दर्पण लगाये गये और गवाक्षों (झरोखों) के भागे स्वच्छ मरने के समान मनोहर हार लटकाये गये । मनुष्यों के जहाँ चरण पड़ते थे ऐसी भूमियों में पांच वर्ण के सुन्दर रत्नमय पूर्ण से नानाप्रकार के बेल-बूट खींचे गये । जिनमें सौ अपवा हजार कलिकायें थीं तथा जो लम्बो डंडी से युक्त थे, ऐसे क्रमल उन मन्दिरों की देहलियों पर तथा अन्य स्थानों पर रखे गये। हाय से पाने योग्य स्थानों में मत्त स्त्री के समान शब्द करने वाली छोटी-छोटी घंटियों के समूह लटकाये गये । जिनकी मणिमय पियां थीं ऐसे पांच वर्ण के कामदार चमरों के साथ बड़ी-बड़ी हारियां लटकाई गई । नाना प्रकार की मालायें फैलाई गई। अनेक की संख्या में जगहजगह बनाई गई विशाल वादनशालाओं, प्रेक्षकशालाओं (दर्शकगृहों) से यह उद्यान अलंकृत किया गया ।१९५
नगरवासी, देशवासी स्त्रियों, मन्त्रियों और सीता के साथ राम इन्द्र के समान बड़े वैभव से उस उद्यान की ओर चले । यथायोग्य ऋशि को धारण करने वाले लक्ष्मण तथा हर्ष से युक्त एवं अत्यधिक अन्नपान की सामग्रीसहित शेष लोग भी अपनी-अपनी योग्यतानुसार जा रहे थे। वहां जाकर देविर्या मनोहर कदलीगृहों में तथा अतिमुक्तक लता के सुन्दर निकुंजों में महावैभव के साय ठहर गई तथा अन्य लोग भी यथायोग्य स्थानों में सुख से बैठ गये। हाथी से उतरकर राम ने विशाल सरोवर में सुखपूर्वक क्रीड़ा की। पश्चात् फूलों को तोड़कर जल से बाहर निकलकर सीता के साथ पूजन की दिव्य सामग्री से जिनेन्द्र भगवान की पूजा की।१२। उस उद्यान में राम ने अमृतमय आहार,
१२५. पप० ९५१३८.४६ ।
१२४. पप० ९५।२९-३४ । १२६. वही, ९५।४८-५३ ।