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________________ मनोरंजन : १२७ धाम से नगर में प्रवेश करता था । यम्दोजन उसकी स्तुति करते थे । राजा के दोनों ओर चंवर खुलाए जाते थे। सफेद छत्र की राजा पर छाया की जाती थी । नृत्य करते हुए लोग उसके आगे-आगे चलते थे। गवाक्ष ( झरोखे) में बैठी हुई स्त्रियाँ उसे अपने वनों से देखती थीं। रस्नमयी ध्वजाबों से नगर की शोभा बढ़ाई जाती थी। नगर में ऊँचे-ऊँचे तोरण खड़े किए जाते थे, गलियों में घुटने एक फूल बिछाए जाते थे और केशर के अल से समस्त नगर सोचा जाता था पुत्रजन्म के उपलक्ष्य में बड़ा भारी महोत्सव किया जाता था। दशानन का जन्म होने पर पिता ने पुत्र का बड़ा भारी जन्मोत्सव मनाया । ८३ ऐसे उत्सवों में समस्त भाई, बन्धु और सम्बन्धी सम्मिलित होते थे । ४ पंचकल्याणक महोत्सव प्राचीन साहित्य में तीर्थंकर के गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाण ये पाँच माणक देवों द्वारा मनाये जाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। पद्मचरित में भी इनमें से अनेक का विशेष वर्णन उपलब्ध होता है । गर्भ- महोत्सव (गर्भकल्याणक ) - पद्मचरित के तीसरे पर्व में भगवान् ऋषभदेव के गर्भमहोत्सव का विस्तृत वर्णन है । जब ऋषभदेव के गर्भावतार का समय हुआ, उस समय इन्द्र की आज्ञा से सन्तुष्ट हुई दिक्कुमारियाँ माता मरुदेवी की सेवा करने लगीं । ये देवियों निम्नलिखित कार्य करती थीं १- वृद्धि को प्राप्त होओ (नन्द), आज्ञा देओ (आशापय), जीवित रहो (जीव ) इत्यादि शब्दों का सम्भ्रम के साथ उच्चारण २ -- हृदयहारी गुणों के द्वारा स्तुति करना । ३- वीणा बजाकर गुणगान करना । ४ - अमृत के समान आनन्द देने वाला आश्चर्यजनक गीत गाना | ५--- कोमल हाथों से पैर पलोटना | १० -पान देना । १ ८२. ८४. वही, २६।१४७ । ८६. षही ३।११३ । ८८. वही, ३।११४ | ९०. वही, ३३११६ । -- ० ७ १००-१०३ । — ८३. पद्म० ७ २१२ । ८५. वही, ३।११२ । ८७. वही, ३।११४ । ८९. वही, ३।११५ । ९१. वही, ३०११६ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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