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________________ १२६ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति पड़ता था मानो अगणित कमलों के समूह से घिरा हो । सुरसुन्दर और पशानन के मुद में शानन के अवयव यरूपी महोत्सव पाकर इतने अधिक फूल गए और रोमांचों से कर्कश हो गए कि आकाश में बड़ी कठिनाई से समा सके १८ इन सब उल्लेखों से युद्धक्रीडा मनोविनोद का एक उत्तम साधन सिह होती है। पारिवारिक उत्सव साधारणतः विवाह के अवसर पर पा किसी राजकीय उत्सव के अवसर पर ऐसे आयोजनों का भरिश: उल्लेख पाया जाता है। राम, लक्ष्मण तथा भरत के विवाहोत्सव के समय मिथिला नगरो पताका, तोरण और मालाओं से सजाई गई, बाजार के लम्बे-चौड़े मार्ग घुटनों तक फूलों से ज्याप्त किए गए, समस्त घरों में शंख और तुरही के मधुर शब्द किए गए। उस समय धन से सब लोक इस तरह भर दिया गया था कि जिससे 'देहि' अर्थात् देओ यह शब्द महाप्रलय को प्राप्त हो गया था-नष्ट हो गया था । तदनन्तर अपने पुत्र तथा बहओं के साथ दशरथ ने बड़े वैभव से युक्त हो अयोध्या में प्रवेश किया। उस समय उत्तम शारीर को धारण करने वालो बहओं को देखने के लिए समस्त नगर. निवासी अपना आधा कार्य छोड़ बड़ी व्यग्रता से राजमार्ग में आ गए।१ राजा युद्ध आदि की समाप्ति के बाद हाधी आदि पर सवार हो बड़ी धूम ७७, पयः ७५।२२ । लक्ष्मोधरशरस्तीक्ष्णैः शिरो लङ्कापुरीप्रभोः । छिन्नं छिन्नमभूद भूयः श्रीमत्कुण्डलमण्डितम् ।। प ७५४२३ । एकस्मिन् शिरसि छिन्ने शिरोद्वयमजायत । तमोरुस्कृतमोवृद्धि शिरांसि द्विगुणां यमुः ॥ पन० ७५।२४ । मित्त बाहुयुग्मे । च जज्ञे बाहुचतुष्टयम् ।। तस्मिन् छिन्ने पयो वृद्धि द्विगुणा बाहसन्ततिः ।। पम ७५।२५ । सहस्ररुत्तमाङ्गानां भुजाना चातिभूरिभिः । पाखण्डरगण्यश्च शायले रावणो वृतः ।। पदा० ७५।२६ । नभःकरिकराकारैः करः केयूरभूषितः । शिरोभिश्चाभवत् पूर्ण शस्त्ररत्नांशुपिंजरम् ।। पप० ७५।२७ । ७८, पा. ८।१३१ ।। ७९. हजारीप्रसाद द्विवेदी : प्राचीन भारत के कलाश्मक विनोद, १० ८६ । ८०. पन० २८२६७, २६८ । ८१, पप० २८०२७६, २७७ ।
SR No.090316
Book TitlePadmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Culture
File Size6 MB
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