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१२८ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
७-भासन देना । ९२ ८-हाथ में तलवार लेकर सवा रक्षा करने में तत्पर रहना ।
९-महल के भीतरी और बाहरी द्वार पर भाल, स्वर्ण की छड़ी, दण्ड और हलदार आदि शस्त्र लेकर पहरा देना ।११
१.--चमर डुलाना ।१५ ११- स्त्र प्लाफर देना । १२- आभूषण लाकर उपस्थित करना । १३–शय्या बिछाने के कार्य में गः ९८ १४-बुहारना ।१९ १५--सुगन्धित द्रव्य का लेप लगाना 1100 १५-भोजन-पान के कार्य में व्यग्र होना । १०१ १७-बुलाने आदि का कार्य ।१०२
अन्माभिषेकोत्सव (जन्मकल्याणक)-सीकर के जन्म के अवसर पर इन्द्र का आसन कम्पायमान हो जाता है 1100 भवनवासी देवों के भवनों में बिना बजाए शंख बजते हैं । १४ घ्यन्तरों के भवनों में अपने आप भेरियों का शब्द होता है । १०५ ज्योतिषी देवों के घर बकस्मात् सिंह को गर्जना होती है और कल्पवासी देवों के घर अपने आप ही घण्टा बजने लगता है। पश्चात् अवषिशान से तीर्थकर का जन्म जानकर इन्द्र भगवान के माता-पिता की नगरी के लिए ऐरावत हाथी पर सवार हो प्रस्थान करता है।१०७ इसके बाद क्षेत्र अनेक प्रकार से आनन्द मनाते है । जैसे
१-नत्य करना। २- तालियां बजाना। ३-सेना को उन्नत बनाना।
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९२. पद्म० ३।११६ । २४. बहो, ११७ ।। ९६. वहीं, ३।११८॥ २८. वहीं, ३।११९ । १००. पही, बा११९ । १०२. वही, ३।१२० । १०४. यही, ३।१६२ । १०६. वहीं, ३।१६३ ।। १०८. यही, ३।१६६, १६७ ।
१३. पन० ३।११६ । ९५. वही, ३।११८ । १७. बही, ३।११८ । १९. वही, ३१११९ । १०१. वहीं, ३११२० । १०३. वही, ३।१६१ । १०५, वही, ३।१६२ । १०७. वही, ३६१६५ ।