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अध्याय १
पद्मचिरत का परिचय पद्मचरित के कर्ता
पद्मचरित के कर्ता आचार्य रविषेण है। इन्होंने अपने किसी संघ, गणगन्दा का टाकेन्द्र नहीं क
स्नातलो चर्चा भी की है। अपनी गुरु परम्परा के विषय में इन्होंने स्वयं लिखा है कि इन्द्र गुरु के शिष्य दिवाकर यति थे, उनके शिष्य अर्हद' यति थे, उनके शिष्य लक्ष्मणसेन मुनि थे और उनका शिष्य में रविषेण हूँ। पं० नाथूराम प्रेमी ने रविषण के सेनान्त नाम से अनुमान लगाया है कि ये शायद सेन संघ के हों और इनकी गुरुपरम्परा के पूरे नाम इन्द्रसेन, दिवाकर सेन, अर्हत्सेन और लक्ष्मण सेन हों। इनके निवास स्थान, माता-पिता आदि के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है । पद्मचरित का समय
पद्मचरित की रचना के विषय में रविषेण ने लिखा है--जिनसूर्य श्री बर्धमान जिनेन्द्र के मोक्ष जाने के बाद एक हजार दो सौ तीन वर्ष छ: मास बीत जाने पर श्री पद्ममुनि (राम) का यह परित लिखा गया है। इस प्रकार इसकी रचना ७३४ विक्रम (६६७ ई०) में पूर्ण हुई। पद्मचरित की कथा वस्तु का आधार
पद्मचरित की कथावस्तु के आधार के विषय में रविषेण ने लिखा है कि श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र के द्वारा कहा हुआ यह अर्थ इन्द्रमति नामक गणधर को प्राप्त हुआ, अनन्तर धारणीपुत्र सुधर्मा को प्राप्त हुआ, अनन्तर प्रभाव को प्राप्त हुआ, प्रभव के अनन्तर कीतिधर आचार्य को प्राप्त हुआ। कीतिघर आचार्य के अनन्तर अनुत्तरवाग्मी आचार्य को प्राप्त हुआ तथा अनुत्त ग्वाम्मी आचार्य का
- - १. आसो दिन्द्रगुरोदिवाकरयतिः शिष्योऽस्य चाहन्मुनि-।
स्तस्माल्लक्ष्मणसेनसन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतम् || पद्म ० १२३।१६८ २. नाथूराम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ८८ । ३. द्विशताम्यधिक समासहस्रं समतीतेऽर्द्ध चतुर्थवर्षयुक्त ।
जिनभास्करबर्द्धमानसिद्धेश्चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ।। पद्म० १२३।१२८