________________
की प्राप्ति २५१, सोलह भावनायें २५१-२५३, आठ प्रातिहार्य २५३, बाँतीस अतिशय २५३, द्रष्य निरूपण-धर्म २५४, अधर्म २५४, आकाश २५५, लोकरचना--अधोलोक २५५, मध्यलोक २५५, कज़लोक २५७, सिद्धक्षेत्र २५८, काल २५९, जीव २५९, ज्ञानोपयोग २६०, दर्शनोपयोग २६०, जीव के भेद २६०, गति २६०, इन्द्रिय २६०, काय २६०, योग २६१, वेद २६१, लेश्या २६१, कषाय २६१, ज्ञान २६१, दर्शन २६१, चारित्र, २६२, गुणस्थान २६२, निसर्गज एवं अधिगमज सम्यग्दर्शन २६२, नामादि न्यास २६२, नाम निक्षेप २६२, स्थापना निक्षेप २६२, द्रव्य निक्षेप २६२, भाव निक्षेप २६३, अनुयोग २६३, सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्सर, भाव तथा अल्पबहुत्व २६३, भव्य जीव और अभय जीव २६३, सिद्धजीव २६४, संसारी जीवों का जन्म २६५, गर्भ, जन्म, जरायुज, अण्डज, पोत, उपपाद जन्म, शरीर, औदारिक, वक्रिमिक, आहारक तथा कामप:--६६. समोर उडी मार्थकता २६६, चारों मतियों में परिभ्रमण २६७, कर्म सिद्धान्त २६९, आठ कर्मशानापरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, पुद्गल २६९, आयु, नाम, गोत्र तथा अन्तराय' २६९-२७०, पाति तथा अधाति कर्म २७०. प्रमाण और नयप्रमाण २७७, नम २७०, अनेकान्त २७१, सप्तमंमी २७१, सर्वज्ञसिद्धि २७२, सुष्टि कर्तृत्व निषेध २७५, यज्ञ का प्रचलन २७६, यज्ञ की उत्पत्ति २७७, यश की पुष्टि में शास्त्र प्रमाण २७९, वेद के अपौरुषेयत्व का निषेध २७९, वेद शास्त्र नहीं है २८०, अपूर्व धर्म का निषेत्र २८१, यज्ञ सम्बन्धी विविध युक्तियों का खण्डन २८१, मनुन्य देवों की मान्यता का निषेध २८२, विविध धार्मिक मान्यतायें-तापस २८३, पृथ्वी पर सोने वाले २८५, भोजन त्यागी २८४, पानी में डूबे रहने वाले २८४, भृगुपाती २८४, शरीर शोषिणी क्रिया करने वाले २८४ तीर्थ क्षेत्र में स्नान करने वाले, दान देने वाले तथा उपवास करने वाले २८४, शिर मुंडाना, स्नान तथा अनेक प्रकार का घेष धारण करना २८४, अग्नि प्रवेश करने वाले २८४, कुलिङ्गी २८५, मस्करी २८५, कृतान्त, विवि, देव तथा ईश्वर को मानने वाले २८५, अधार्मिक क्रियायें २८५, कुकृस-सुकृत २८५, मुक्ति कासाधन २८६ ।
अध्याय ७ उपसंहार ___ पनचरित का सांस्कृतिक महत्व २८५, भारतीय कथा साहित्य में पमचरित का स्थान २८७-२९४, पनचरित का परवर्ती साहित्य पर प्रभाव-पपचरित और हरिवंशपुराण २९४, पनवरित और पउपमरिउ २९९-३०२ । सहायक ग्रन्थ सूचि
३०३-३०८ शबानुक्रमणिका
३०९-३२७