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१०६ : पामचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
है. आदि-आदि । इन सबसे विदित होता है कि उस समम लोग भूत-प्रेतों में विश्वास करते थे । भूत किसी व्यक्ति को आबिष्ट कर उससे किसी भी प्रकार की प्रवृत्ति करा सकता है, ऐसा थे लोग मानते थे ।
वटवृक्ष की पूजा-उस समय घटवृक्ष (न्यग्रोध वृक्ष) की पूजा होती थी। इसके प्रारम्भ के विषय में कहा गया है कि एक बार जब भगवान् ऋषभदेव वटवृक्ष के समीप विद्यमान थे तब उन्हें समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाला फेवलज्ञान प्रकट हुआ। उस समय उस स्थान पर देवों द्वारा भगवान् की पूजा की गई पो इसलिए उसी पति से आज भी लोग प्रवृत्ति करते हैं।६५ अर्थात् वट-वृक्ष की पूजा करते हैं ।
शकुन में विश्वास-किसी कार्य के फल के निर्धारण में लोग शकून को बहुत महत्त्व घेते थे । शुभ शकुन कार्य-सिशि का द्योतक तथा अपशकुन कार्य में बाधा आने या कार्यसिद्धि न होने का प्रतीक समझा जाता था। उस समय में प्रचलित शकुन के प्रकारों आदि का निरूपण पहले किया जा चुका है। ___ज्योतिष विद्या पर विश्वास-किसी भी मंगल कार्य करने से पूर्व ग्रह, नादि की ज्योतिष सामना के भागार पर शुभमहर्त का निश्चय किया जाता था, ताकि कार्य निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हो । अञ्जना और पवनंजय के पिताओं ने जब अपनी पुत्री और पुत्र के वैवाहिक सम्बन्ध का निश्चय किमा तब समस्त ज्योतिषियों की गति को जानने वाले ज्योतिषियों ने तीन दिन बीतने के बाद वैवाहिक कार्य करना उचित है, ऐसी सलाह दी ।।"
शस्त्रपूजा-अब रथनूपुर के विद्याधर राम की बल-परीक्षा के लिए बनावर्त भोर सागरावतं धनुषों को मिथिला ले जाने लगे उस समय उन्होंने जिनेन्द्र भगवान् की पूजा और स्तुति करने के पश्चात् गदा, हल आदि शस्त्रों से युक्त उन दोनों धनुषों की पूजा की ।९५७ इस उल्लेख से सिद्ध होता है कि उस समय शस्त्रपूजा की जाती थी।
१६३. पा. १७२३०। ९६४. ऋषभस्य तु संजातं केवलं सर्वभासनम् ।
महाम्यग्रोधवृक्षस्य स्थितस्यासन्नगोचरें ।। पयः १११२९२ । ९६५. तत्प्रवेशे कृता देवस्तस्मिन् काले विभोर्यतः ।
पूजा तेनैव मार्गण लोकोऽयापि प्रवर्तते ।। पनः १११२९३ । ९६६. पप्र. १५९३।
९६७. पद्म २८।१७१-१७३ ।