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सामाजिक व्यवस्था : १०७
आधार-प्रवहार वाचार-व्यवहार ही किसी देश अथवा काल को संस्कृति को समझने का सबसे बड़ा माध्यम है। पद्मचरितकालीन समाज को भी बहुत कुछ इसी आधार पर परखा जा सकता है। सभ्यता, शिष्ट व्यवहार, मधुरसंवाद, विनम्र व्यवहार और उच्च शिष्टाचार उस युग की विशेषता थी।
सामाजिक शिष्टाचार में अतिथि सत्कार को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था । द्वितीय पर्व में मगधदेश का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है-'आहार आदि की व्यवस्था से उस देश के गृहस्थ पथिकों को सन्तुष्ट करते हैं इस कारण उस देश में लोगों का सदा आवागमन होता रहता है।'' मुनिवेषधारी गतिथि को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था, क्योंकि समाज को नैतिकता की ओर से जाने तथा आरिमक गुणों की ओर उन्मुख करने में उस समय मुनियों का अधिक हाथ रहता था । मनि अवस्था में जब भगवान ऋषभदेव एक बार हस्तिनापुर पहुँचे तम राजा श्रेयांस महल के नीचे उतरकर अन्तःपुर सथा अन्य मित्र जनों के साथ उनके पास आया और हाथ जोड़कर स्तुति पाठ करता हुआ प्रदक्षिणा देने लगा।६३ सर्वप्रथम राजा ने अपने केशों से भगवान के चरणों का मार्जन कर आनन्द के आंसुओं से उनका प्रक्षालन किया । १७० रत्नमयी पात्र से अर्ध्य देकर उनके चरण धोए, पवित्र स्थान में उन्हें विराजमान किया और बाद में उनके गुणों से आकृष्ट हो कलश में रखा हुआ इक्षु का शीतल जल देकर विधिपूर्वक आहार कराया ।"
भगवान् को आहार देने का फल यह हुआ कि ऐसे उत्कृष्ट पात्र को दान देते देखकर देवता भो हर्षित होकर साधु-साधु और घन्य-वन्य के शाब्दों से भाकाश को गुंजायमान कर दुन्दुभि बाजों का शम्द करने लगते थे।७२ अत्यन्त सुखकर स्पर्श से मुक्त दिशाओं को सुगन्धित करने वाली वायु बरसने लगती थी और साकाश में रत्नों की धारा बरसने लगती थी।
स्त्रियाँ भी अतिथि सत्कार में निपुण होती थीं। दशानन के यहाँ एक बार जब मन्दोदरी का पिता मय पहुँचा तब उस समय महल के सासर्वे खण्ड में दशानन की वहिन बहनवा थी। उसने सबका अतिथि-सस्कार किया था । १७४ उस
९६८. पन० २।३०।
९६९. पम ४११२, १३ । ९७०, वही, ४।१४ ।
९७१. वही, ४११५, १६ । ९७२. वही, ४१७ ।
९७३. वही, ४।१९। ९७४. अथेन्दुनखया तस्य कृताभ्यागमसरिया ॥ पन० ८।३१ ।