________________
५४|
न्यायरत्नसार : पंचम अध्याय
प्रकार का है । जिस हेतु की वृत्ति विपक्ष में संदिग्ध होती है वह संदिग्धविपक्षसि अनैकान्तिक है। जैसे-जब कोई ऐसा कहता है कि "अहंत सर्वज्ञोनास्ति बक्तत्वात" अहंत परमात्मा सर्वज्ञ नहीं है क्योकि वे वक्ता हैं । तो यहां पर वक्तृत्व रूप हेतु अपने साध्य को निश्चित रूप से सिद्ध नहीं कर सकता है। क्योंकि सर्वज्ञत्व का और घवतृत्व का परस्पर में कोई विरोध नहीं है । अर्हन्त प्रभु में सर्वज्ञता भी रही आवे और वक्तृत्व भी रहा आवे । अतः सर्वज्ञाभाब से विपक्ष- सर्वज्ञ में इस हेतु की वृत्ति शंकित होने सेसंदिग्ध होने से यह संदिग्ध विपक्ष वृत्ति बाला हो जाता है । तथा जिस हेतु की वृत्ति विपक्ष में निश्चित रूप से रहती है वह निश्चित विपक्ष बत्ति बाला अनंकान्तिक हेत्वाभास है । जैसे "शब्दोऽनित्यः प्रमेयत्वात् घटबत्" शब्द अनित्य है क्योंकि वह घट' की तरह प्रमेय है । यहाँ प्रमेय रूप हेतु पक्ष-शब्द में भी रहता है और सपक्ष घट में भी रहता है पर विपक्ष जो अनित्याभावरूप आकाश है उससे यह व्यावन तहीं है । अतः उसमें भी इसकी वृत्ति निश्चित है । इसलिये यह निमिचत विपक्ष वृत्ति वाला अनेकान्तिक हेत्वाभास है ।।३३।। दृष्टान्ताभास
सूत्र--साधर्म्यदृष्टान्ताभासो नवविध साध्यसाधनोभयधर्म विकलः, संक्षिध साध्यसाधनोभयानन्वया प्रदशितान्वय विपरीतान्वय भेदात् ॥३४।।
व्यास्या- पक्षाभास और हेत्वाभासों का निरूपण करके अब सूत्रकार दृष्टान्ताभासों की प्ररूपणा करते हैं। यह पहले समझा दिया गया है कि हाटान्त दो प्रकार का होता है-पाक साधर्म्यदृष्टान्त और दूसरावधय॑हटान्त । साधम्यंहाष्टान्त जब सदोष होता है तब वह साधर्म्यष्टान्ताभास कहा जाता है। इसी साधर्म्यदृष्टान्ताभास के यहाँ ये नो भेद बतलाये गये हैं। साध्य धर्म विकलदृष्टान्ताभास (१), साधनधर्म विकल दृष्टान्ताभास (२), साध्य साधनोभय विकल दृष्टान्ताभास (३), संदिग्ध साध्य धर्म वाला दृष्टान्ताभास (४). संदिग्ध साधन धर्म चाला इष्टान्ताभास (५). संदिग्ध उभय वाला दृष्टान्ताभास (६), अनन्वय दृष्टान्ताभास (७), अप्रदर्शितान्वयवाला दृष्टान्ताभास (E), और विपरीतान्वय वाला दृष्टान्ताभास (६)। इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार से है--
___ "अमूर्त होने के कारण दुःख की तरह शब्द नित्य है" इस अनुमान प्रयोग में शब्द पक्ष, नित्य साध्य, अमूर्त हेतु और दुःख दृष्टान्त है । इष्टान्त में साध्य और साधन दोनों रहते हैं पर यहाँ जो "दुःख" दृष्टान्त दिया गया है यह साध्यविकल है। क्योंकि दुःख नित्य नहीं है। इसी तरह शब्द में इसी हेत द्वारा जब नित्यता सिद्ध करने के लिये परमाणु को दृष्टान्त के स्थान पर रखा जाता है तो पौद्गलिक होने से परमाणु में अमूर्तत्व हेतु का अभाव रहता है । अतः यह दृष्टान्त साधन धर्म विकल होने के कारण साधन धर्म विकल दृष्टान्ताभास है । इसी तरह जब इसी हेतु द्वारा शब्द में नित्यत्व साध्य करते समय घट रूप दृष्टान्त दिया जाये तो यह इटान्त साध्य-साधन दोनों से विकल हो जाता है। अतः दृष्टान्ताभास को श्रेणि में परिगणित हो जाता है । संदिग्ध साध्यादि धर्म वाले दृष्टान्तामास के उदाहरण इस प्रकार से हैं । यह पुरुष रागादि वाला है क्योंकि वक्ता है, जैसा कि देवदत्त । यहाँ देवदत्त यह दृष्टान्त संदिग्ध साध्य बाला है । क्योंकि अन्य जनों के मनों के मनोविकार अप्रत्यक्ष होने से देवदत्त में गगादि का सद्भाव संदिग्ध है । इसी प्रकार यह पुरुष मरणधर्मवाला है क्योंकि देवदन की तरह यह गगादिवाला
१. अमर्तत्त्वेन नित्ये शब्दे साध्ये कार्य परमाणु घटाः साध्य साधनोभय विकला।"
-प्रमाणमीमांसायाम् २३