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न्यायरलसार : तृतीय अध्याय
|१७ उसके द्वारा पर्वत के भीतर रही हई परोक्ष अग्नि का ज्ञान कर लेते हैं। यही अनुमान का लक्षण है। साध्य के अग्नि के-सद्भाव में ही धूम होता है । अग्नि के अभाव में नहीं होता है। इस प्रकार जो अग्नि के साथ धूम का सम्बन्ध है बही अविनाभाव है । यह अबिनाभाव जिसमें हो वह अविनाभावी है। ऐसा अविनाभावी लिङ्ग ही होता है । तभी जाकर वह अपने लिङ्गी का ज्ञान कराता है । अतः लिङ्ग से लिङ्गी का ज्ञान ही अनुमान है ॥ ११ ।। अनुमान के भेद :
सूत्र--स्वार्थ-परार्थ भेदात्त द्विविधम् ॥ १२ ।। अर्थ-- स्वार्थानुमान और परार्थानुमान इस प्रकार के अनुमान के दो भेद हैं 11 १२ ।।
व्याख्या-अपने लिये जो अनुमान होता है वह स्वार्थानुमान है और पर के लिये जो अनुमान होता है वह परार्थानुमान है । इस कथन का तात्पर्य ।सा है कि जिसने पहले तर्क-प्रमाण से साध्य और माधन का साहचर्य सम्बन्ध निश्चित कर लिया है ऐसा वह व्यक्ति जब पर्वतादि स्थान में धूम को उठता हुआ देखता है तब उसे तानुभुत ध्याप्ति का स्मरण आता है और उसग सहकृत उस साध्याबिनाभाबी एक लक्षण वाले दृप्ट धूमादिरूप लिङ्ग से वहां अग्नि आदि साप साध्य के होने का स्वयं अनुमान कर लेता है । यस, ग्रही स्वार्थानुमान है। यह स्वार्थानुमान ज्ञान रूप होता है। इस अनुमान में बह गुर्वादिक के माध्य साधन की व्याप्ति प्रदर्शक उपदेश की अपेक्षा विना साध्याविनाभात्री लिङ्ग की सहायता से साध्य के सद्भाव का निश्चय कर लेता है । यह अनुमान किसी-किसी प्रबुद्ध पुरुष को ही होता है । पगानुमान बचन रूप होता है । अर्थात् स्वार्थानुमान का अभिधान करने वाला जो वचन है उसे उपचार से परार्थानुमान कहा गया है । बास्तव में अनुमान तो ज्ञानरूप ही होता है परन्तु विना समझाये शिष्य को अनमान का ज्ञान हो नहीं सकता है । अनः शिष्य को होने वाले ज्ञान का कारण होने से बचन को अनुमान कह दिया गया है ।।१२।। हेतु लक्षण कथन :
सूत्र-तयोपपत्येक लक्षणो हेतुः, न तु त्रिपञ्चलक्षणस्तस्य तवापासेऽपि सत्त्वात् ॥१३॥
अर्थ-तथा-साध्य के होने पर ही उपपत्ति हेतु का होना यही है एक लक्षण जिसका ऐसा हेतु होता है।
व्याख्या- अनुमान के लक्षण में साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहा गया है । अतः यहां पर उस साधन का हेतु का लक्षण प्रकट किया गया है। साधन अपने साध्य के विना नहीं होता है किन्तु साध्य के सद्भाव में ही होता है । इसलिये इसे "अन्यथानुपपत्ति" शब्द से भी अभिहित किया गया है । कितनेक सिद्धान्तकारों ने हेतु का लक्षण जो पक्षधर्मत्व, सपक्षेसत्य और विपक्षाद् व्यावृत्ति वाला होता है वही सच्चा हेतु है ऐसा माना है, तथा कितनेकों ने इन तीनों के सहित जो अबाधित विषय और असत्प्रतिपक्ष गला होता है वही सच्चा हेतु है ऐसा माना है । प्रथम मान्यता बौद्धों की है और द्वितीय मान्यता नैयायिकों की है । पर ये दोनों प्रकार की मान्यताएँ इस तथोपत्ति लक्षण या अन्यथानुपपत्ति लक्षण के माने बिना निर्दोष नहीं मानी गई हैं ॥१३॥ साध्य लक्षण का कथन :--
सूत्र-अनिश्चिताभिमतमबाधितं साध्यम् ।। १४ ।।