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न्याय-दीपिका
पायदोपिका में उल्लिखित अन्य और ग्रन्थकार__प्राधर्मभूषणने अपनी प्रस्तुत रचनामें अनेक ग्रन्थ और ग्रन्यकारोंका उत्लेख किया है तथा उनके कथनसे अपने प्रतिपाद्य विषयको पुष्ट एवं प्रमाणित किया है। प्रतः यह उपयुक्त जान पड़ता है कि उन ग्रन्थों और प्रन्थकारोंका यहाँ कुछ परिचय दे दिया जाय । प्रयमतः न्यायदीपिकामें उल्लिखित हुए निम्न जनेतर अन्य और ग्रन्थकारोंका परिचय दिया जाता है :---
(क) ग्रन्थ-१ ग्यायविन्दु ।
(ख) प्रन्यकार--१ विग्नाग, २ शालिकामाच, ३ उदयन पोर ४ वामन ।
म्यारविन्दु-यह बौद्ध विद्वान धर्मकीत्तिका रचा हुआ मोट-न्यायका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसमें तीन परिच्छेद हैं। प्रयम परिच्छेदमें प्रमाणसामान्यलक्षणका निर्देश, उसके प्रत्यक्ष प्रौर अनुमान इन टो भेदोंका स्वीकार एवं उनके लक्षण, प्रत्यक्षके भेदों आदिका वर्णन किया गया है । द्वितीय-परिच्छेदमें अनुमानके स्वार्थ, परार्थ भेद, स्वार्थका लक्षण, हेतुका
रूप्य लक्षण और उसके स्वभाव, कार्य तथा अनुपलब्धि इन तीन भेदरों प्रादिका कथन किया है । और तीसरे परिच्छेद में परार्थ मनुमान हैत्वाभास, दृष्टान्त, दृष्टान्ताभास प्रादिका निरूपण किया गया है। त्यायदीपिका पृ० १०पर इस प्रत्यके नामोल्लेख पूर्वक दो वाक्यों और १० २५ पर इसके 'कल्पनापोढमनान्तम्'प्रत्यक्षलक्षणकी समालोचना की गई है । प्रत्यक्षके इस लक्षणमें जो 'अभ्रान्त' पद निहित है वह खुद धमकीतिका ही दिया हुआ है। इसके पहले बौद्धपरम्परामें 'कल्पनापोड' मात्र प्रत्यक्षका लक्षण स्वीकृत था। धर्मकीत्ति बौद्ध दर्शनके उनायक युगप्रधान थे । इनका मस्तिस्व समय ईसाकी सातवीं शताब्दि (६३५१०) माना जाता है। ये नालन्दा विश्वविद्यालयके माचार्य धर्मलके शिष्य