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________________ ६५ क्षणके विचार समयमें ही हेत्वाभाम मानते हैं। वादकालमें नहीं । उस समय तो पक्ष में दोष दिखा देनेसे ही व्युत्पन्नप्रयोगका दृपिल बतलाते हैं । तात्पर्य यह कि वे किञ्चित्करको स्वतन्त्र हेत्वाभास माननेमें खास जोर भी नहीं देते। वेताम्बर विद्वानाने असिद्धादि पूर्वोक्त तीन ही हेत्वाभास स्वीकृत किये हैं, उन्होंने प्रकिचित्करको नहीं माना । माणिक्यनन्दिने अकिचित्करको हेत्वाभास माननेकी जो दृष्टि बतलाई है उस दृष्टिसे उसका मानना उचित है । वादिदेवसूरि' और यशोविजयने " यद्यपि अकिचित्करका खण्डन किया है पर वे उस दृष्टिको मेरे ख्याल में श्रीफल कर गये हैं । ग्रन्यथा वे उस दृष्टिसे उसके औचित्यको जरूर स्वीकार करते । आ० घर्मभूषणने अपने पूज्य माणिक्यनन्दिका अनुसरण किया है और उनके निर्देशानुसार अकिंचित्करको चोथा हेत्वाभास बताया है। प्रस्तावना इस तरह न्यायदीपिका श्राये हुए कुछ विशेष विषयोंपर तुलनास्मक विवेचन किया है। मेरी इच्छा थी कि आगम, नय सप्तभंगी, अनेकान्त प्रादि शेष विषयोंपर भी इसी प्रकारका कुछ विचार किया जाने पर अपनी शक्ति, साधन, समय और स्थानको देखते हुए उसे स्थगित कर देना पड़ा। १ " लक्षण एवासी दोपा व्युत्पन्न प्रयोगस्य पक्षदोषेणैव दुष्टत्वात् । " परीक्षा० ६-३८२ व्यायाव० का० २२, प्रमाणनय० ६-४७ ॥ ३ स्याद्वादरना० पृ० १२३० । ४ जैनतर्कभा० पृ० १८ ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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