SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्याय-दीपिका अन्यथानुपपन्नत्वं पत्र तत्र अयेण किम् । नान्यथानुषपन्नत्वं यत्र तत्र प्रयेण किम् ।। अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र किं तत्र पञ्चभिः । नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र कि तत्र पञ्चभिः ।। इनमें पिछली कारिका प्राचार्य विद्यानन्दकी स्वोपज्ञ है और वह प्रमाणपरीक्षामें उपलब्ध है। परन्तु पहली कारिका किसकी है ? इस सम्बन्ध में यहाँ कुछ विचार किया जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि यह भारिया भाग वगन लि रची गई है और वह बड़े महत्वकी है। विद्यानन्दने अपनी उपर्युक्त कारिका भी इसीके आधार पर पांचरूप्यका स्वण्डन करनेके लिए बनाई है। इस कारिकाके कर्तृत्वसम्बन्ध में ग्रन्थकारोंका मतभेद है। सिद्धिविनिश्चय टीकाके का अनन्तवीर्यने उसका उद्गम सीमन्धरस्वामीसे बतलाया है। प्रभाचन्द्र और वादिराज' कहते हैं कि उक्त कारिका सोमन्धरस्वामीके समवशरणसे लाकर पावतीदेवीने पात्रकेशरी अथवा पावस्वामीके लिए समर्पित की थी । विद्यानन्द उसे वात्तिककारको कहते हैं । वादिदेवसूरि' और शांति रक्षित' पात्रस्वामीकी प्रकट करते हैं । इस तरह इस कारिका के कत्तुं त्वका अनिर्णय बहुत पुरातन है। देखना यह है कि उसका कर्ता है कौन ? उपर्युक्त मभी ग्रन्यकार ईसाकी आठवीं शताब्दीसे ११वीं शताब्दीके भीतर हैं और शान्तरक्षित (७०५-७६३ ई.) सबमें प्राचीन हैं। शान्तरक्षितने पात्रस्वामीके नामसे और भी कितनी ही कारिकानों तथा एदवाक्यादिकोंफा उल्लेख करके उनका भालोचन किया है। इससे वह निश्चितरूपसे मालूम हो १ सिद्धिविनि० टी० पृ. ३००A । २ देखो, गद्यकशकोशगत पानमेशरीको कथा । ३ न्यायवि० वि० २-१५४ पृ. १७७ । ४ तसा. हलो पृ० २०४ । ५ स्या० रत्ना० पृ० ५२१ । ६ तस्वसं० पृ० ४०६ ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy