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________________ प्रस्तावना चतुलक्षणकी मान्यताएं नैयायिकोंकी ज्ञात होती हैं । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जयन्तभट्ट'ने पञ्चलक्षण हेतुका हो समर्थन किया है, उन्होंने प्रपञ्चलक्षणको हेतु नहीं माना। पिछले नैयायिक शङ्करमिश्रने' हेतुकी गमकतामें जितने रूप प्रयोजक एवं उपयोगी हों उतने रूपोंको हेतुलक्षण स्वीकार किया है और इस तरह उन्होंने अन्य यव्यतिरेकी हेतुमें पांच और केपलान्वयी सथा केवलब्यतिरेकी हेतुओंमें चार ही रूप गमकतोपयोगी बतलाये हैं । यहां एक खास बात और ध्यान देनेकी है यह यह कि जिस अविनाभावको जनताकिकोंने हेतुका लक्षण प्रतिपादन किया है, उसे अपन्तभट्ट और वाचस्पतिने पंच लक्षणों में समाप्त माना है। अर्थात् अविनामावके वाराही सर्व रूपोंके ग्रहण हो जाने पर जोर दिया है, पर के अपनी पंचलक्षण या आर लक्षणवाली नैयायिक परम्पराके मोहका त्याग नहीं कर सके | इस तरह नैयायिकोंके यहां कोई एक निश्चित पक्ष १"केवलान्वयी हेतु स्त्येव अपश्चलक्षणस्य हेतुस्वाभावात् । केवलज्यतिरेको तु क्वचिद विषयेऽन्वयव्यतिरकमूलः प्रवर्तते नात्यन्त मन्वयबाह्यः।" -न्यायकलि० पृ. १० । २ "केवलान्वयिसाध्यको हेतुः केवलान्वयो । अस्य 4 पक्षसत्त्वसपक्षसत्वाबाधितासत्प्रतिपक्षितत्वानि चत्वारि रूपाणि गमकस्वोपयिकानि । अन्वयन्यतिरेकिणस्त हेतोविपक्षासत्वेन सह पंच । केवलम्यतिरेकेणः सपक्षसत्वयतिरेवेण चत्वारि । तथा च यस्य हेतोर्यावन्ति रूपाणि गमकतापयिकानि स हेतुः ।".--शेषिक उप० पू०१७। ३ "एतेषु पंचलक्षणेषु अविनाभावः समाप्यते । अविनाभायो व्याप्निनियमः प्रतिबन्धः साध्याविनाभाबित्यमित्यर्थः ।"-- न्यायकलि० पृ. २ ॥ ४ "यद्ययविनाभाव: पंचसु चतष का रूपेषु लिङ्गस्य समाप्यते इत्यविनाभावेनैव सर्वाणि लिङ्गरूपाणि सगृह्यन्ते, नथापीह प्रसिद्धसच्छन्दाभ्यां द्वयोः सङ्ग्रहे गोवलीवदन्यायेन तत्परित्यज्य विपक्षव्यतिरेकासप्रतिक्षत्वावाघितविषयत्वानि सङ्गृह्णाति ।"--न्यायवा ता. पृ० १५८ ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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