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________________ न्याय-दीपिका विपक्षश्यावृत्ति इन तीन रूपोंका स्पष्ट प्रतिपादन एवं समर्थन है मौर माठरने अपनी सांख्यकारिकावृत्तिमें उनका निर्देश किया है । कुछ भी हो, यह अवश्य है कि त्रिरूप लिङ्ग को वशषिक, सांस्य और बौद्ध तीनोंने स्वीकार किया है। नयामिक' पूर्वोक्त तीन रूपोंमें अबाधितविषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व इन दो रूपोंको और मिलाकर पांवरूप हेतुका कथन करते हैं। यह रूप्य और पाँच रूप्यकी मान्यता अत्ति प्रसिद्ध है और जिसका खण्डन मण्डन न्यायग्रन्थों में बहुलतया मिलता है। किन्तु इनके अलावा भी हेतुके द्विलक्षण, चतुर्लक्षण और पलक्षण एवं एकलक्षणकी मान्यतामोंका उल्लेख तर्क ग्रन्थोंमें पाया जाता है। इनमें चतुलक्षणको मान्यता संभवत: मीमांसकोंकी मालूम होती है, जिसका निर्देश प्रसिद्ध मीमांसक विदान प्रभाकरानुयायी शालिकानाथने किया है । उद्योतकर' मोर वाचस्पति मिश्रके' अभिप्रायानुसार पंचलक्षण की तरह द्विलक्षण, विलक्षण और १ "गम्यतेऽनेनेति लिङ्गम्; तच्च पञ्चलक्षणम्, कानि पुनः पञ्चलक्षणानि ? पक्षधर्मत्वम्, सपक्षधर्मत्वम्, विपक्षाच्यावृत्तिवाधितविषयस्वमसत्प्रतिपनत्वं चेति । ....एतैः पंचभिलक्षणरुपपन्न लिङ्गमनुमापर्क भवति ।"-न्यायमं• पृ० १०१ । न्यायकलि० पृ. २ । न्यामवा० ता. पृ० १७१ । २ देखो, प्रस्तावना पृ० ४२ का फुटनोट । ३ "साध्ये व्यापकत्वम्, उदाहरणे चासम्भवः । एवं द्विलक्षणस्विलक्षणय हेतुलं. म्यते ।"-न्यायवा० पृ० ११६ । "ष शब्दात् प्रत्यक्षागमाविरुद्ध चैत्येवं चतुर्लक्षणं पंचलक्षणमनुमानमिति ।"-न्यायवा० पृ० ४६ । ४ “एतदुक्तं भवति, प्रावितविषयमसत्प्रतिपक्षं पूर्ववदिति ध्रुव कूत्वा शेषदित्येका विधा सामान्यतोदृष्टमिति द्वितीया, शेषवत्सामान्यतोदृष्टमिति तृतीया, तदेवं त्रिविषमनुमानम् । तत्र चतुसंक्षणं द्वयम् । एकं संचलक्षमिति ।" --स्यायवा ता० पृ० १७४ ।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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