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________________ १५० न्याय-दीपिका मानको मर्म करते है। साधा और कान में च और गमक (गोप्य और बोषक) भाव का सापक और व्यभिचार की गन्प से रहित सो सम्बन्धविशेष है उसे व्याप्ति कहते हैं। उसी को प्रविमा भाव भी कहते हैं । उस व्याप्ति के होने से भग्न्याविक को धूमादिक हो 5 मनाते हैं, घटादिक नहीं। क्योंकि घटाबिक की प्रग्न्यादिक के साथ पाप्ति (अविनाभाव) नहीं है । इस अविनाभावरूप ध्याप्ति के मान में जो साधकतम है वह पह तर्फ नाम का प्रमाण है। श्लोकवात्तिक भाष्य में भी कहा है - "साध्य और साधन के सम्बन्धविषयक प्रज्ञान को दूर करने रूप फल में जो साधकतम है वह तर्क है।" 'हा' भी 10 तक का ही दूसरा नाम है। वह तर्क उक्त व्याक्तिको सर्वदेश और सर्वकाल की अपेक्षा से विषय करता है। शङ्का-इस तर्क का उदाहरण क्या है ? समाधान—'जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ पग्नि होती है' यह तर्क का उदाहरण है। यहां धूम के होने पर अनेक बार ____15 अग्नि की उपलब्धि और अग्नि के प्रभाव में धूम को अनुपालगिष पाई जाने पर 'सब जगह और सब काल में पुत्रो अग्नि का व्यभिबारी नहीं है-अग्नि के होने पर ही होता है और अग्नि के प्रभाव में नहीं होतर' इस प्रकार का जो सर्वदेश और सर्वकालरूप से अधिना भाष को ग्रहण करने वाला बाद में ज्ञान उत्पन्न होता है वह सर्क 20 नाम का प्रत्यक्षाविक से भिन्न ही प्रमाण है। प्रत्यक्ष निकटवर्ती हो षम और प्रनि के सम्बन्ध का ज्ञान कराता है, अतः वह ज्याप्ति का ज्ञान नहीं करा सकता। कारण, व्याप्ति सवंदेवा और सर्वकाल को लेकर होती है। शङ्का-मद्यपि प्रत्यक्षसामान्य ( साधारण प्रत्यक्ष ) व्याप्ति को ___25 विषय करने में समर्थ नहीं है तथापि विशेष प्रत्यक्ष उसको विषय
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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